ऋग्वेद पर व्याख्यान भाग - 1 | Rigwed Par Wyakhyan Bhag - 1

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Rigwed Par Wyakhyan Bhag - 1  by भगवद्दत्त बी० ए० - Bhadwaddatta. B. A.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) थे खोग प्रत्येक बाल को उसी रंग में देखते हैं, जैसे बह पश्चिम में हो खुकी हु। परलोकगत बिट्टारीलाल शास्त्री ने 'दि वेदास ऐयड देयर अद्भास पराड उपाड्ास' नामफ पक ग्रन्थ झाइलमापषा में लिखा था । उस ग्रन्थ में ऋ-प दयानन्द ही के धाक्य इघर उधर रखे गये हैं । उन्हें भी ठेखक उचित क्रम नहीं देसका । हमारी दृष्टि में वह ग्रन्थ विडतसापूरवक नहीं लिखा गया । अझस्तु, उसी प्रन्थ को समालोचना करते इुए कं. थ ने पाश्चत्यों की प्रकृति दिखाइ है। यह छिखता है---४/८ छाए दि वा . साध. घिए6. उघशाछुट फाणगोर छिपाएते उप एव 1ज्धतलटड फालो टहु]ु0प्ाच्ते शी हलंगाटट,फपाप्तघात 800 पाठ, पा क्रिह आपूह।. एव घि।€ जिंजिह, धाएत चातली पा ९800 छह लिए उलपलापुजए, घि।ए. 0] 8एपोपप्पा'€ ५0 प्रा दॉ. 000णिएाा नाप चलिए उंत्5 एव ५िट पेध', अर्थात बाइबल में सब मानव झौर देव झान सिद्ध करन के लिये उसके भाष्यकार उसके अझथ को समय २ पर पलटते गये' एखे छी ग्रन्थों से उस ने बिहारी- छाल के भ्रन्थ को उपमा दी है । यट सत्य दे कि यहां भी बहुत से स्म्प्रदायी खोगों ने समय * पर टाह्मस्टूत्री से ही अपना पचच सिख करना चाहा । पर इस से यह कभी नहीं सिद्ध होता कि सारे विचारक ही पेसे टं, झांर उन के धन्थ इसी भाव से दिखते जाते हैं। इम इस के दिपरीत कद सकते दें कि पाश्चात्य, लोग आय्योवर्तीय सभ्यता वा इस के वाउूमय को किन्हीं विशेष कारणों से बढुत गिराना चाहते हें, देखा मंकालयादि सुप्रसिद्ध लोगों ने इस |विषय में क्या कहा था । झझस्तु, इन बातों को झोड़ता हूं । झब तो सत्य का उन्वेषणा होगा और सब की बुद्धि की यथाथ परीक्षा दागी । मेरे बिचार तीसरी झ्रणी के ही हैं। ऐसा होते हुप भी यथासम्भव मंने पूषे-पछ को पृूर्णा-प्रकट करके उस पर विचार किया दे । यही दाखी इस प्रम्थ के झगले भागों में भी रहेगी । उन में थे मौखिक




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