तत्वार्थश्लोकवार्त्तिका लंकार भाग - 4 | Tattwarthshlokawarttikalankar Bhag - 4

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Book Image : तत्वार्थश्लोकवार्त्तिका लंकार भाग - 4  - Tattwarthshlokawarttikalankar Bhag - 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तत्त्वायंचिन्तामणि ध्द मबध्रत्यप ही अवधिह्वान देवनारकियोंके होता है । इस प्रकार दूसरा पू्वदकम नियम कर देनैसे देश और नारकियोंके गुणते उत्पन हुए क्षयोपशामनिमितत अवधिज्ञानका निषेध हो जाता है । क्योंकि देव और नारकियोंके ता अप्रत्यासपानावरण कर्मका उदय बना रहनेके कारण संयम, देश संयम ओर श्रेणी भादिके भावस्वरूप गुणोंका अभाव है । भतः उन शरीरधारी देवनारकियोंकि गुणप्रत्यय अवधिज्ञान नहीं उपजाता दे । नन्वेवमबारणे5्वषी ज्ञानावरणक्षयोपशमहेतुरपि न भवेदित्याजकामपसुदति । यहां किपतीका प्रश्न है कि इत प्रकार देवनारकियोंके अपविज्ञानमें भवग्रत्ययका ही यदि अब- घारण किया जायगा, तब तो ज्ञानावरणका क्षयोपशाम भी उस अवधिज्ञानका देतु नहीं हो सकेगा ! किंतु सम्पूर्ण ज्ञानेंमिं कषयोपशम या श्षयकों तो अनिवार्य कारण माना गया दे । अवधारण करनेपर तो उत्तर क्षयोपामकी कारणता प्रथगयूत हो जाती दे । इस प्रकार आशेकाका श्री विदयानंदस्वामी बार्तिकोंद्वारा स्वयं निराकरण करते हैं । नावधिज्ञानवृत्कर्मश्रयोपरामदेतुता । व्यवच्छेया प्रसज्येताप्रतियोगित्वनिर्णयात्‌ ॥ ५ ॥ बाह्यों हि प्रत्ययावत्रास्यातों भवगुणों तयोः । प्रतियोगितमित्पेकनियमादन्यविच्छिदे ॥ ६ ॥ १ मवप्रत्यय एव ”” ऐसा कहदेनेख़े अवधिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमको अवधिज्ञानकी देतुताका व्यवष्छेर दो जाना यद प्रतंग कथमपि प्रस्तुत नहीं होगा । क्योंकि क्षयोपशामकों भप्रतियोगीपनका निर्णय दो चुका है । अवधारण द्वारा विपक्षमूत प्रतियोगियोंका निवारण हुआ करता है । मावाय --मवप्रययका प्रतियोगी भत्रप्रययामाव या संयम भादि गुण हैं । अतः मवप्रयय ही ऐसा अवघारण करनेपर मत्रप्रययामावका ही निवारण होगा । कयोपशमकी कारणताका बाकाप्र मात्र भी व्यवच्छेद नहीं दो सकता दे | कारण कि उन दो प्रकारवाके अवधिज्ञानोंके बढिरंगकारण यह प्रकरणमें मत्र और गुण ये दो बखाने गये हैं । अतः भव और गुण परत्परमें एक दूसरेके प्रतियोगी हैं । इस कारण शेष अन्यका न्पवच्छेद करनेके किये एकका नियम कर दिया जाता हे । भ्र्यात्‌--जित देव या नारकीके मवको कारण मानकर अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ दे, में दी उनके अवधिज्ञानमें संयम आदि गुण कारण नहीं दे, किन्तु क्षयोपदाम तो कारण अवश्य दे । गुण तो बढिरंगकारण है, ओर क्षयोपशाम अन्तरंगकारण दे । अत मवके प्रतियोगी हो रहे बहिरंगकारण गुणका तो देव नारकियोंके अवधिज्ञानमें निषेध है । किन्तु भप्रतियोगी बन रहे क्षयोपशमका निषेष नहीं किया गया हे )




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