तत्वार्थश्लोकवार्त्तिका लंकार भाग - 4 | Tattwarthshlokawarttikalankar Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
590
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तत्त्वायंचिन्तामणि ध्द
मबध्रत्यप ही अवधिह्वान देवनारकियोंके होता है । इस प्रकार दूसरा पू्वदकम नियम कर
देनैसे देश और नारकियोंके गुणते उत्पन हुए क्षयोपशामनिमितत अवधिज्ञानका निषेध हो जाता है ।
क्योंकि देव और नारकियोंके ता अप्रत्यासपानावरण कर्मका उदय बना रहनेके कारण संयम, देश
संयम ओर श्रेणी भादिके भावस्वरूप गुणोंका अभाव है । भतः उन शरीरधारी देवनारकियोंकि
गुणप्रत्यय अवधिज्ञान नहीं उपजाता दे ।
नन्वेवमबारणे5्वषी ज्ञानावरणक्षयोपशमहेतुरपि न भवेदित्याजकामपसुदति ।
यहां किपतीका प्रश्न है कि इत प्रकार देवनारकियोंके अपविज्ञानमें भवग्रत्ययका ही यदि अब-
घारण किया जायगा, तब तो ज्ञानावरणका क्षयोपशाम भी उस अवधिज्ञानका देतु नहीं हो सकेगा !
किंतु सम्पूर्ण ज्ञानेंमिं कषयोपशम या श्षयकों तो अनिवार्य कारण माना गया दे । अवधारण करनेपर
तो उत्तर क्षयोपामकी कारणता प्रथगयूत हो जाती दे । इस प्रकार आशेकाका श्री विदयानंदस्वामी
बार्तिकोंद्वारा स्वयं निराकरण करते हैं ।
नावधिज्ञानवृत्कर्मश्रयोपरामदेतुता ।
व्यवच्छेया प्रसज्येताप्रतियोगित्वनिर्णयात् ॥ ५ ॥
बाह्यों हि प्रत्ययावत्रास्यातों भवगुणों तयोः ।
प्रतियोगितमित्पेकनियमादन्यविच्छिदे ॥ ६ ॥
१ मवप्रत्यय एव ”” ऐसा कहदेनेख़े अवधिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमको अवधिज्ञानकी
देतुताका व्यवष्छेर दो जाना यद प्रतंग कथमपि प्रस्तुत नहीं होगा । क्योंकि क्षयोपशामकों
भप्रतियोगीपनका निर्णय दो चुका है । अवधारण द्वारा विपक्षमूत प्रतियोगियोंका निवारण हुआ
करता है । मावाय --मवप्रययका प्रतियोगी भत्रप्रययामाव या संयम भादि गुण हैं । अतः
मवप्रयय ही ऐसा अवघारण करनेपर मत्रप्रययामावका ही निवारण होगा । कयोपशमकी
कारणताका बाकाप्र मात्र भी व्यवच्छेद नहीं दो सकता दे | कारण कि उन दो प्रकारवाके
अवधिज्ञानोंके बढिरंगकारण यह प्रकरणमें मत्र और गुण ये दो बखाने गये हैं । अतः भव और
गुण परत्परमें एक दूसरेके प्रतियोगी हैं । इस कारण शेष अन्यका न्पवच्छेद करनेके किये एकका
नियम कर दिया जाता हे । भ्र्यात्--जित देव या नारकीके मवको कारण मानकर अवधिज्ञान
उत्पन्न हुआ दे, में दी उनके अवधिज्ञानमें संयम आदि गुण कारण नहीं दे, किन्तु क्षयोपदाम
तो कारण अवश्य दे । गुण तो बढिरंगकारण है, ओर क्षयोपशाम अन्तरंगकारण दे । अत
मवके प्रतियोगी हो रहे बहिरंगकारण गुणका तो देव नारकियोंके अवधिज्ञानमें निषेध है । किन्तु
भप्रतियोगी बन रहे क्षयोपशमका निषेष नहीं किया गया हे )
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