नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagari Pracharini Patrika

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Nagari Pracharini Patrika by कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैदिक साहित्य में छेन्यास की परंपरा ६ बा ने उत्तर दिया-*' 'वास्तव में देखा शाय तो संन्यास एक ही प्रकार का है, किंतु श्रशान, श्रशक्ति श्रौर क्मलोप के कारण इसके तीन मेद हो गए हैं। वे ही क्रमश: चार हो गए--वैराग्यहंन्यास, शानसंन्यास, शानतैराग्यत॑न्यास श्र कर्मसन्यास । नो व्यक्ति काम तथा श्रन्य इच्छाश्रो से विरक्त होकर पू्वकृत शुभ कर्मों के कारण संन्यास अ्रहण करता है वह बेराग्यसंन्यासी है । जो व्यक्ति साधनचतुश्य संपन्न है, शास्त्रशान तथा श्रनुमव द्वारा बाह्य वस्तुश्रों की नश्वरता को जानकर सांसारिक ओगों को छोड़ता है वह शानवंन्यासी है । वह क्रोध, ई'या; शोक, श्रहंकार तथा गर्व छोड़ देता दै एवं शरीर, ल्ली, घन श्रादि ऐहिक तथा पारलौकिक मोगों से भी श्रनासक्त हो जाता है, उन्हें वबमन के समान घृणा की दृष्टि से देखता है । ज्ञानवैराग्य संन्यासी सभी श्राश्षमों का पालन करता हुभ्रा क्रमशः संस्यात में प्रवेश करता है। ज्ञान श्रौर वैराग्य के द्वारा समस्त वस्तुश्नों ले श्रनासक्त हो जाता दे श्रोर दिगंबर रहने लगता है । जो व्यक्ति श्राश्रमों का पालन करते हुए बेराग्य न होने पर भी संन्यास श्राश्रम में प्रवेश करता दै उसे क्मसंन्यासी कहा जाता है । जी व्यक्ति ब्रह्मचय॑ से ही संन्यास ग्रहण कर लेता है उसे बेराग्यसंन्यासी कह जाता है ' जो ज्ञान हो जाने पर संन्यास में प्रवेश करता है उसे ज्ञानसंन्यासी बहा जाता हैं । इसके विपरीत जो ज्ञान प्राप्त करने के लिये संन्यास में प्रवेश करता है उसे कर्मसन्यासी कहा जाता है । यह दो प्रकार का है--निमित्तसंन्याप्त श्रर्थात्‌ किसी विशेष कारण या घटना के फलस्वरूप स्वीकार किया बानेवाला, श्रौर श्रनिमित्तमंप्या, सत्वाभाविक भुकाव के कारण स्वीकार किया जानेवाला । निमित्त- संन्यास का य्राउुरसंन्यास भी कहा जाता है श्र श्निमित्त को कमंसन्यास । श्रातुर्संस्यात मृत्यु के समय लिया जाता है, जिस समय व्यक्ति रोग या बद्धवस्था के कारण श्रत्य1 श्रशक्त हो जाता है श्रीर कर्म करने का सामध्य नहीं रहता । श्निमित्त सैत्यात का श्रय दे जन्र व्यक्ति श्रात्मा के श्रतिरिक्त समस्त ब्राह्म वस्तु को नश्वर तथा देय समभककर उनसे विरक्त होता है । संन्यासी की वेशभूषा मनुस्मृति ( षष्ठ ५२ ) में संन्यासी के नीचे लिखे बाहम चिह्न बताए. गए हैं। उसके सिर के बाल, दाढ़ी, मूँछ तथा नख कटे होने चाहिए । मिद्चापात्र, दंड श्रौीर क्मंडल रखना चाहिए. । पात्र तुँबी, काठ; मिट्टी या बॉँस के होने १, इसके अतिरिक्त देखें; बोधायन घर्मसूत्र हि० 9०1१७) ७; महाभारत हादुश २४४।८११४ एवं विष्णु ० 4६13-०८ ।




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