नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagari Pracharini Patrika

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Nagari Pracharini Patrika by कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सखोजविवरण : झपेद्धित संशोधन ३९११ केठंवघमेलोभौ लिखा है वह श्रपेित सतकं शोधश्ति का परिचायक नीं है, इसके विपरीत जो तथ्य थे उन्हे तो नजर झंदान कर दिया छौर व्यर्थ की नवीन उद्घावना कर डाली | बात यह है कि 'कविविनोद' के आर्ट विवरण में ड २८६ पर पाँचवाँ प्य इस प्रकार दिया है -- शख्पसाद भाषा करी समुर सक खवु ( सहु ) कोह । इसका श्रयं यह लगाया गया कि गुरुप्रसाद नामक ग्यक्तिने भाषा शी, जिते सन लोग सरलता से समभ सकें । पर वहाँ श्रपे्तित र्थं यद याकि गुदके प्रसाद- झनुग्रह-ऊुपा द्वारा इसकी भाषा की गई अर्थात्‌ भाषा में रचना की । रचयिता के नाम की सूचना तो श्रतिम लेखनपुष्पिका से ही मिल जाती है णो षी विवरण्ण के शृ २८६ पर इष प्रकार उद्धृत है - दति श्रौ षरतरगष्छौ वाखनाचा्यवरयधुयं भी सुमतिमेस शिष्य मुनि मानजी छत कविविनोद नाम भाषा निदान खिकित्सा पथ्यापथ्य समान सत्तम खंड समाप्त ॥ इस विवरण में कई ग्रथकारों के नामोका पता त्र॑तिम पुष्पिकाश्रोते ही लग सका है। जब सर्वत्र यदद नीति अपनाई गई तो पता नहीं कविविनोदकार के साथ यह भूल कैसे दो गई | थोड़ी देर के लिये श्रतिम पुष्पिका को भी छोड़ दिया जाय, पर कवि मे तो श्रात्मघृत्त श्रपनी कृति में ही इतने विस्तार से दिया है कि शक्षा की गुंजाइरा ही. नहीं । सम है श्रत्वेषक का ध्यान इन सहत्वपूर्ण पर्थों की श्रोर नहीं गया - भट्टारक जिनचंद गुरु सब गच्छ़ के खिरदार । खतरगर्छु महिमा लिलो सध जन कौ सुखकार ॥ ११॥ जातौ गच्डुवासी प्रग वाचक सुमति सुमेर । ताको शिन्य मुनि मानजी षासी बीकानेर ॥ १२॥ कयौ पंथ लाहौर मरं उपजी शुद्धि की इद्धि । ओ नर रास्ते कंटम्रद सो दोषै परसिद्ध ॥ १३॥ प्रथम खड का श्रंतिम प्य - खरतर स्ट सुनि मानी कीयौ प्रगट इष्ट मंड ॥२६५॥ षति धी ख० मानजो शधिरयितेयां वैद्य आषा कविषिनोद्‌ नाम प्रथम खंड सान्तं ॥




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