गांधी जी भाग - 12 | Gandhi Ji Bhag - 12

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Gandhi Ji Bhag - 12 by कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांधीजी चाहिये और धर्मके संवन्धमें हुई नयी-नयी खोजोंके साथ उसका ऐक्य स्थापित होना चाहिये । | (८) क्या आप यद नहीं मानते कि भारतवपं कर्म-मूमि है ओर इसमें जन्म पाये हर शरूसको अपने भले बुरे पूरव-कमके ही अनुसार विया, बुद्धि, धन ओर प्रतिष्टा मिल्ती दै ! _ पत्रलेखक सल्नन जेसे मानते हैं वैसे नहीं । क्योंकि दर शख्स कहीं क्यों न हो जसा करेगा बसा पावेगा । लेकिन भारतवर्ष खास करके भोग-भूमिके विपरीत अथसें क्मं-भूमि है, कतेव्य-भूमि है । के: * (€) अछूतपनके दूर करनेकी वात करनेके पदले क्या अछूतोंमें शिक्षा- प्रचार और सुधार दोना लाजिंमी शर्त नहीं है ? अस्पूड्यता दूर किये बिना अस्पृश्योंसें सुधार या अचार नहीं हो सकता | (१०) क्या यह्‌ वात कुदरती नहीं है; जेसी कि होनी चाहिये कि शराब न पीनेवाले शराव पीनेवालेसे परहेज रखते हैं. ओर शाकाहारी अशाकाहारीसे ? यह आवश्यक नहीं है । शराच न पीनेवाखा अपने सराव पीनेवाले भाईको उस बुरी आदतसे बचानेके छिये उसके पास जाकर अपना कतेंव्य करेगा ओर इसी प्रकार मांस न खानेवाला खानेबालोंको दूं ढेगा । (११) क्या यह बात सच नहीं है कि एक शुद्ध (इस अथमें कि वह मयपी नेहीं है और श्चाकादारी है ) आदमी आसानीसे अशुद्ध ( का अथमें कि बह मद्यपी और अशाकाहारी है) दो जाता है जव कि वह्‌ उन छोर्गोम मिलता जुछ्ता है जो शराब पीते हैं; हिंसा करते हैं और मांस खाते है! यह कोई आवश्यक बात नहीं है कि वह शख्स जो उसकी बुराई नदीं जानता है यदि शराब पीये या मांस खाये तो वह अपवित्र (नापाक) है । लेकिन में समझता हूँ कि घुरे आदमीकी संगत करनेसे बुराई दोना संभव है । इस मामलेमें तो अस्पृश्योंके साथ किसीकी संगत करनेकी तो. कोई बात ही नहीं की गई हे । (१९) कुछ कट्टर ब्राह्मण जो दूसरी जातियोंसे (जिनमें अछूत भो शामिल हैं) नहीं मिठते जुछते हैं और अपनी एक अछ्ह्ददा जाति बनाकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति करते हैं; उसका कारण क्या यही नहीं हे ? वह आध्यात्मिक स्थिति जिसकी रक्षाके छिये चारों तरफसे बन्द रहना पढ़ता है, बड़ी कमजोर होनी चाहिये और अलावा इसके वे दिन भी गये जव किं मनुष्य सदा एकान्तम रह कर अपने गुर्णोकी रा करता था । (१३) अछूतपनको दूर करनेका भविपाद्‌न करके च्या आप भारतके एय




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