मुंशी साहित्य भाग 6,7,8 [राजाधिराज] | Munshi Sahitya Bhag 6,7,8 [Rajadhiraj ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द् राजाधघिराज़
निकला था; उसे लगा कि वह उससे कुछ पूछ रहा है ।
आम्रमट बड़े परिश्रमसे अपने चित्तको पृथ्वीपर छाया, कपाल परसे पसीना
पोंछा और नेत्रोंको उस छड़केपर स्थिर करके बोला '' ऐं। ”'
एँ ! क्या ! आपको किससे काम है ! ”'
यह प्रश्न पहले जिस स्वरमें हुआ था, उसकी मिठासका रमरृण करते हुए,
आम्रमटने कहा --“ दुर्गपालसे । ”
“* ओहो ढुर्गपाढ महाराजसे, वे तो उस ओर रहते हैं। ”
** तब साम्बा बृहर्पतिका बाड़ा यह नहीं है ? ”?
“यह पुराना बाड़ा है। महाराज तो नए बाड़ेमे रहते हैं। चलो, रास्ता
दिखा दूं। ”'
आम्रमदका' पेर नहीं उठा । उसने बड़ी कोदिशसे पूछा, '' और यह घर
किसका है ? *” कहकर जिस घरमें वह स्त्री गई थी, उस ओर इदारा किया ।
** बह तो पाठ्दाला है । क्यों ? ”*
६६ नहीं; यों ही।”'
३-सगुकच्छका दुर्गपाठ
चकित हुआ आम्रमट उस विद्यार्थीके पीछे पीछे चला और कुछ ही दूर
जानेपर साम्बा बृद्स्पतिका नया बाड़ा आ गया ।
वहीँ घर छोटे छोटे होनेपर भी नए, थे । वेद-ध्वनिके बदले घोड़ोंकी हिनहिना-
हट सुनाई दी और जुगाली करती हुई गायोंके बदले तेजीसे चलते हुए
राजपुसत्र दिखे ।
“** मदजी, उस दरवाजेसे होकर जाभो, तो महाराज मिल जायैंगे ।
कहकर विद्यार्थीने अपना रास्ता लिया ।
झाम्रभटमें आगे बढ़नेका उत्साह न रहा । उसे तो पीछे जाना था और हृदय-
हारिणी सुन्दरीको खोलना था । इस समय राजकीय प्रपंच उसे बिलकुछ नीर्स
लये । सत्ता और सम्पत्तिका योग उसें श्लुद्व-सा प्रतीत हुआ । जीवनका सर्वस्व
उसे दो जादूभरे नेत्रोंके स्मरणमें सम्प्रया मा । उसे यह याद नहीं रहा कि
वह कब -तक खड़ा रहा । एक सुमटने आकर जब पूछा तत्र चेत हुआ।
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