मुंशी साहित्य भाग 6,7,8 [राजाधिराज] | Munshi Sahitya Bhag 6,7,8 [Rajadhiraj ]

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Munshi Sahitya Bhag 6,7,8 [Rajadhiraj ] by कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् राजाधघिराज़ निकला था; उसे लगा कि वह उससे कुछ पूछ रहा है । आम्रमट बड़े परिश्रमसे अपने चित्तको पृथ्वीपर छाया, कपाल परसे पसीना पोंछा और नेत्रोंको उस छड़केपर स्थिर करके बोला '' ऐं। ”' एँ ! क्या ! आपको किससे काम है ! ”' यह प्रश्न पहले जिस स्वरमें हुआ था, उसकी मिठासका रमरृण करते हुए, आम्रमटने कहा --“ दुर्गपालसे । ” “* ओहो ढुर्गपाढ महाराजसे, वे तो उस ओर रहते हैं। ” ** तब साम्बा बृहर्पतिका बाड़ा यह नहीं है ? ”? “यह पुराना बाड़ा है। महाराज तो नए बाड़ेमे रहते हैं। चलो, रास्ता दिखा दूं। ”' आम्रमदका' पेर नहीं उठा । उसने बड़ी कोदिशसे पूछा, '' और यह घर किसका है ? *” कहकर जिस घरमें वह स्त्री गई थी, उस ओर इदारा किया । ** बह तो पाठ्दाला है । क्यों ? ”* ६६ नहीं; यों ही।”' ३-सगुकच्छका दुर्गपाठ चकित हुआ आम्रमट उस विद्यार्थीके पीछे पीछे चला और कुछ ही दूर जानेपर साम्बा बृद्स्पतिका नया बाड़ा आ गया । वहीँ घर छोटे छोटे होनेपर भी नए, थे । वेद-ध्वनिके बदले घोड़ोंकी हिनहिना- हट सुनाई दी और जुगाली करती हुई गायोंके बदले तेजीसे चलते हुए राजपुसत्र दिखे । “** मदजी, उस दरवाजेसे होकर जाभो, तो महाराज मिल जायैंगे । कहकर विद्यार्थीने अपना रास्ता लिया । झाम्रभटमें आगे बढ़नेका उत्साह न रहा । उसे तो पीछे जाना था और हृदय- हारिणी सुन्दरीको खोलना था । इस समय राजकीय प्रपंच उसे बिलकुछ नीर्स लये । सत्ता और सम्पत्तिका योग उसें श्लुद्व-सा प्रतीत हुआ । जीवनका सर्वस्व उसे दो जादूभरे नेत्रोंके स्मरणमें सम्प्रया मा । उसे यह याद नहीं रहा कि वह कब -तक खड़ा रहा । एक सुमटने आकर जब पूछा तत्र चेत हुआ।




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