श्री कृष्ण चरित अर्थात श्री रुक्मिणी मंगल | Srikrishna Charita Arthata Sri Rukmini Mangal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
311
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
कर कृपा गुरू ने यह विद्या मुझको है बेटा, सिखलाइ ।
गुरु कपा मिली जिसको, उसने क्या सिद्धि नहीं जग में पाई ॥
हर रोज बना सकती हूँ में जितना चाहूँ उतना सोना ।
चोसठ वर्षों से नियम यही, छानो धरती कोना-कोना
घनपत ने हर्पित हो मन में, घर में रक्खे बतेन धोकर ।
बाबा से बढ़कर बुटिया के आदर में सेठ हुआ तत्पर ॥
भीतर पलंग एक उलवाया ।
नरम बिछीना भी विछवाया ॥।
मादर बुटिया वहाँ लिटाइे ।
पेर दबाने लगी. लुगाई
संध्या समय बनाई ब्यालू ।
तुरे, भिंडी, परवल, झलू ॥।
तरदद-तरदह की सब तरकारी ।
पूरी हलया खीर सवारी ॥
सब सामग्री यह प्रथम ले घनपत के दास ।
भक्ति सहित श्रद्धासहित आये बुटिया पास ॥
बुद्धिया ने भी तुरत ही सोने के अनमोल ।
फेर निकाले सेकड़ों बरतन भकोली खोल ।।
अलग-अलग सामान सब उनमें लिया रखाय ।
पीछे पहले की तरह दिए सभी फिकवाय ।
धनपत ने आनंद से. भरे कोठरी बीच |
भक्ति भुलाइ लोभ ने उसे बनाया नीच ॥।
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