प्रेक्षा ध्यान | 1075 Preksha Dhyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.79 MB
कुल पष्ठ :
44
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आगम और आगमेतर स्रोत ११५ मे पचास पाक्षिक मे तीन सौ चातुर्मासिक मे पाच सौ और वार्षिक में एक हजार आठ है। श्वास का कालमान ० पायसमा ऊसासा कालपमाणेण हुति नायव्वा | एवं कालपमाण उस्सग्गेण तु नायव्व। । आच० निर्युक्ति १५५३ एक उच्छूवास का कालमान है--एक चरण का स्मरण। इस प्रकार कायोत्सर्ग से काल-प्रमाण ज्ञातव्य है। शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन ० वोसइचत्तदेहो काउस्सग्ग करिज्ञाहि। आव० निर्युक्ति १५५६ शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन और परिक्रम का त्याग कर कायोत्सर्ग करे। पुनः पुनः अभ्यास ० असइ वोसट्ट चत्तदेहे। दसवेआलियं १०1१३ जो मुनि वार-वार देह की प्रवृत्ति का विसर्जन और त्याग करता है--वह है। ० अभिक्खण काउसग्गकारी । दसवेआलियं चूलिया २1७ मुनि वार-वार कायोत्सर्ग करनेवाला हो। परिणाम धर्म का बोध ० नरा मुयच्चा धम्मविदु ति अजू। आयारो ४1२८ देह के प्रति अनासक्त मनुष्य ही धर्म को जान पाते है और धर्म को जाननेवाले ही ऋजु होते है।
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