वरमाला से पाया ज्ञान उजाला | Varamala Se Paya Gyan Ujala

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Varamala Se Paya Gyan  Ujala by मुनि धर्मेश - Muni Dharmesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के सान्निध्य से ही जाग्रत हो जायेंगे और निकल पड़ेंगे अपने आत्मकल्याण के मार्ग पर, फिर कोई शक्ति उनको रोक नहीं सकती है। रात दिन-हम ऐसे कितने उदाहरण महाराजश्री के व्याख्यानों में सुनते आये हैं। फिर इतने गहरे उलझने की क्या आवश्यकता है? गाथापति - बाईजी! उलझने की बात नहीं है। ये बातें कहने में जितनी सरल, सुनने में जितनी कर्णप्रिय लगती हैं उतनी ही अपने पर घटते ही सारी श्रद्धा, भक्ति और एकता गौण हो जाती है और लोग किनारा लेने लग जाते हैं। साथ ही, साधु-संत भी कड़वे लगने लग जाते हैं। सिद्धिदेवी बोली - कुछ अंशों में आपका चिंतन यथार्थ है, पर इन बातों में उलझकर हमको ऐसे महान्‌ लाभ से वंचित होना उचित नहीं है। इसलिए आप सब से एक ही निवेदन है कि अपन सब एकमत होकर आचार्यदेव को आग्रहपूर्वक निवेदन करके स्वीकृति प्राप्त करें| हमारा महिला मंडल तो इसके लिए कृतसंकल्प है। यदि आप आगा-पीछा करोगे तो यह बीड़ा हमको उठाना पड़ेगा। क, ५, +, ९ १५३ ५० (९) सिद्धिदेवी की इस मर्मभरी बात को सुनकर सब एकमत हो गये और 'शुभस्य शीघ्रम' की कहावत को चरितार्थ करते हुए उठकर सीधे स्थानक में पहुंच गये और जिनको भी समाचार मिले, सब धीरे-धीरे स्थानक में पहुंचने लगे। थोड़ी ही देर में व्याख्यान-स्थल भर गया। संघप्रमुख श्रेष्ठी सारगचंद्र आदि मुनिश्री धर्मप्रियजी के पास पहुंचे और अर्ज की - भगवन्‌। आज संघ गुरुचरणों में अपनी अन्तर्भावना निवेदन करने पहुंचा है। इसलिए आप आचार्यदेव को धर्मसभा में लाने का कष्ट करें| मुनि धर्मप्रियजी श्रेष्ठी सागरचंद्र की बात श्रवणकर हर्षित होते हुए आचार्यदेव के चरणों में उपस्थित हुए और सारी बात अर्ज करके सभास्थल में पधारने का आग्रह करने लगे। आचार्यदेव हालांकि शारीरिक स्थिति से कुछ विश्नाम फरमा रहे थे, पर संघ की भावना का सम्मान रखते हुए धर्मप्रियजी के कंधों का सहारा लेते हुए सभास्थल पर ज्योंही पधारे, सारा सभास्थल आचार्यदेव के जयनाद से गूंज उठा। आचार्यदेव भी सबकी वन्दना स्वीकार करते हुए उच्च पट्ट पर आसीन हुए और मंद मुस्कानयुक्त वचन-माधुर्य की रसधघारा प्रवाहित करते हुए फरमाने लगे - देवानुप्रियो! बताइये - आज आप किस अभिप्राय से यहां एकत्रित हुए हैं? वरयाता से पाया ज्ञान उजाला हा




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