प्रेक्षा ध्यान | 1075 Preksha Dhyan

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1075 Preksha Dhyan by मुनि धर्मेश - Muni Dharmesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगम और आगमेतर स्रोत ११५ मे पचास पाक्षिक मे तीन सौ चातुर्मासिक मे पाच सौ और वार्षिक में एक हजार आठ है। श्वास का कालमान ० पायसमा ऊसासा कालपमाणेण हुति नायव्वा | एवं कालपमाण उस्सग्गेण तु नायव्व। । आच० निर्युक्ति १५५३ एक उच्छूवास का कालमान है--एक चरण का स्मरण। इस प्रकार कायोत्सर्ग से काल-प्रमाण ज्ञातव्य है। शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन ० वोसइचत्तदेहो काउस्सग्ग करिज्ञाहि। आव० निर्युक्ति १५५६ शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन और परिक्रम का त्याग कर कायोत्सर्ग करे। पुनः पुनः अभ्यास ० असइ वोसट्ट चत्तदेहे। दसवेआलियं १०1१३ जो मुनि वार-वार देह की प्रवृत्ति का विसर्जन और त्याग करता है--वह है। ० अभिक्खण काउसग्गकारी । दसवेआलियं चूलिया २1७ मुनि वार-वार कायोत्सर्ग करनेवाला हो। परिणाम धर्म का बोध ० नरा मुयच्चा धम्मविदु ति अजू। आयारो ४1२८ देह के प्रति अनासक्त मनुष्य ही धर्म को जान पाते है और धर्म को जाननेवाले ही ऋजु होते है।




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