मुन्शीजी और उनकी प्रतिभा | Munshiji Aur Unki Pratibha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री कन्हैयाल्ाज माणिकलाल सुन्शी
कट्पना-सष्टि का एक विधाता दै। इसका ऋण सु'शीजी ने कभी धरती --
कार नही किया है। उपन्यास लिखने को कला मे दूयूमा सु शीजी -का.
प्रेरणा-गुरु बना रद है।
भश
दर
वर राजा
सन् १६०० ईं० में इमारे देश में सयंकर अ्रकाल पढा। वागरा जिले
मे दुष्काल ने भ्रत्यन्त विकराल स्वरूप धारण कर लिया था । यद्द जिला
इनके पिताजी के झधघीन था इसलिये उन्हें बहुत दौढ-धूप करनी पढ़ती
थी । फलस्वरूप इनके पिताजी बीमार हो गए, आँखों पर 'सूजन छा
गई,छुतती भी सूज गईं शोर उनकी स्ठति नष्ट दोने लगी । मद्दीनों तक वे
सत्यु और जीवन के झूले मे मुलते रहे । एक दिन संध्या को ऐसा प्रतीत
हुआ कि अरब पिताजी रात्रि नहीं बिता सकेगे । चारो छोर रोना-पीटना
मच गया । सुशीजी को माता मद्दादुवजी के मन्दिर से चली गई और
घरती पर शिर टेक कर प्राथ॑ना करने लगी कि पति के पदले मेरी ऋत्यु
हो जाय । इनकी बहने भी एक के बाद एक मद्दादेवजी के मन्दिर मे
प्राथना कर आई कि पिताजी को बचाकर उनके बदले में हमारे प्राण ले
लें । उस समय सु 'शीजी के सन मे भी विचार त्ञाया कि माता का और
बहनों का जीवन लेकर महादेवजी' पिताजी को जीवित नहीं करना
थचाहते हैं पर सम्भवत. मेरे प्राण लेकर पिताजी को जीवित कर दे । ये
सन्दिर मे गये । दीपक मंदु-मंद जल रद्दा था । इन्होने प्रथ्वो पर लिर
रखकर प्राथना की “भगवान् ! आवश्यकता हो तो मुझे ले लो परन्तु
मेरे पिताजी को बचा दो । चन्द्रशेखर हृदय वाले थे । उन्दोंने न तो
उन्दी में से किंसी के प्राण लिये और न उनके पिताजी के दी लिये ॥
इनके पिताजी अच्छे तो हुए परन्तु जीवन से उनका विश्वास उठ
गया आर झपने एक-सात्र पुत्र का विवाद तत्काल कर देने को वे उत्सुक
हो उठे । उस समय कनुभाई तेरदद वर्ष के थे और अभी मैट्कि सें
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