गरीब | Garib
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रारीब [१३4
एस
ल०--( अपनी ही घुन में ) हाँ, और यह ध्यान रहे--पत्थर
के अक्षर दो इंची से कस मोटे न हों । ताकि सब श्ांसानी से पढ़
सकें । समभे, दो इंच मोटे ।
सब--( सिर नवाकर ) जी, सवा दो! केसी बात कह
रहे हैं आप ? (जाते हैं )
त्रिलो०--( प्रवेश कर, स्वतः ) यहाँ वष-गॉठ मन रही है ।
उधर मेरे नौनिहाल की जीवन-गाँठ खुली जा रही दै । विधाता !
क्या तय किया है तूने ?
या तो दरिद्रता की ज्वालों से अब बचाले !
या एक दम जलादे. तिल-तिल जलाने वाले ॥
( स्वगत पैरों की ओर इशारा करते हुए ) बढ़ो, आगे बढ़ो,
वैभव के द्वार तक पहुँचो ।
सुनानी है वहाँ करुखा जनक दुर्भाग्य की गाथा 1
सुकाना स्वाथ के चरों में अपना श्राज है माथा ॥।
जिया ! तू क्यों काँप रही है ? वाणी तू क्यों मूक दो रही
है ? मिमक, संकोच को छोड़, अभय होकर भीख माँग ।
विधाता ने यददी लिक्खा है इस फूटे-मुकद्दर में ।
दिया था जन्म इसही वाह्ते घन-द्दीन के घर में ॥।
ल०--( द्प के साथ ) कौन है ?
त्रिलो०--( दीनता पूवक ) एक रारीब, बदनसीब ।
ल०--( तेज़ी से ) किस लिए श्राया है यहाँ ? किसने श्राने
दिया तुमे ?
त्रिलो--( गिड़गिड़ाते हुए ) दया की भीख माँगने 'आाया
हूँ । ग़ारीब--पहरेदारों ने रदमकर झ्राने दिया है सेठजी ! नाराज
न टूजिए !
मुसीबत से घिरा हूँ, तंग दस्ती का सताया हूँ ।
मदद हो जाय कुछ इस ही लिए चरणों में '्याया हूँ ॥
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