रस - भरी | Ras Bhari

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Ras Bhari  by भगवत जैन - Bhagvat Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नमस्ते यह्‌ न पृद्छिये कि-क्यों?' बस्त, इतन ही भें सन्तोष कर लीजिये कि मुम एक कहानी लिखनी है ! लिखनी तो है लेकिन प्लार जो नहीं बन रहा' *! कहाँ से शुरू की जाय, यद सवाल सामने है! सोचता हूँ-किसी तरुणी की भाव-भंगिमा का वणन कर रस-मन्दाकिनी का धारावाही प्रवाह प्रवाहित करू, कहानी अनायास आअकषक श्रौर सरस बन जायेगी । लेकिन मुसीबत यद्द आकर पड़ती है कि इसके लिए




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