तुकाराम - गाथा - सार | Tukaram Gatha - Saar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.71 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री मोती देवी सरावगी - Shri Moti Devi Sarawagi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म-परिचय श्प्
वह मगल का भी मगल हो गया है । सुख-दु ख से विपरीत नही रहा । अब
आघात भी हितफल देता हैं । अब सारे जीव हमारे लिए अच्छे हो गए है ।
सचित ही भोगू , आगे किसीका न लू । आत्मस्वरूप में बैठा रहूं, किसी-
की चाकरी न करू । आजतक विषय-काम के हाथ पडा रहा, कभी विश्नाति
न पाई । अब पराधीनता समाप्त हो गई। अब से में अपनी सत्ता
चलाऊ ।
जो सुखरादि बैकुण्ठ मे भी नही मिलती, वे सर्व सुख-ऐदवर्य मुझमें
, निरन्तर निवास करते हे ।
मुझसे प्रभु ने जैसा कुछ बुलवाया, वैसा में बोला, वरना मेरी जाति और
कुछ के बारे में तो आप जानते ही हे। हें सन्त मा-बाप, मुझ दीन पर क्रोध
न करके मुझे मेरी बातो के लिए क्षमा करो । मेरे भावी अपराधों को मन में
न लाकर मुझे अपने चरणो के निकट जगह दो ।
में सन्तो के घर का दास बनकर उनके द्वार-आगन में लोटूगा, क्योकि
उनकी चरण-रज के लगने से मेरे वयालीस कुलो का उद्धार होगा ।
दुप्ट की सगति न हो । उससे भजन मे बाधा पडती है । हे विट्ठल, दुष्ट
लोग तेरा निषेध करते है, मुझे यह विल्कुछ सहन नही होता । मै अकेला किस-
किस से वाद-विवाद करू ? तेरे गुण गाऊँ या इन दुष्टो की खबर लू ?
जिस पद में राम का नाम नही है, उसे सुनने मे मुझे कष्ट होता है ।
तेरा कहलाकर अब दूसरे का कहलाने मे मुझे लज्जा आती है । मुझे सर्वे-
भाव से एक तू ही प्रिय है ।
मुझे सन्त-समागम और भगवान का नाम ही प्रिय है । मोक्ष की इच्छा
यहा किसको हूँ ? में तो भगवान की सेवा ही मागता हूँ ।
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