तुकाराम - गाथा - सार | Tukaram Gatha - Saar

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Tukaram Gatha - Saar by श्री मोती देवी सरावगी - Shri Moti Devi Sarawagi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म-परिचय श्प्‌ वह मगल का भी मगल हो गया है । सुख-दु ख से विपरीत नही रहा । अब आघात भी हितफल देता हैं । अब सारे जीव हमारे लिए अच्छे हो गए है । सचित ही भोगू , आगे किसीका न लू । आत्मस्वरूप में बैठा रहूं, किसी- की चाकरी न करू । आजतक विषय-काम के हाथ पडा रहा, कभी विश्नाति न पाई । अब पराधीनता समाप्त हो गई। अब से में अपनी सत्ता चलाऊ । जो सुखरादि बैकुण्ठ मे भी नही मिलती, वे सर्व सुख-ऐदवर्य मुझमें , निरन्तर निवास करते हे । मुझसे प्रभु ने जैसा कुछ बुलवाया, वैसा में बोला, वरना मेरी जाति और कुछ के बारे में तो आप जानते ही हे। हें सन्त मा-बाप, मुझ दीन पर क्रोध न करके मुझे मेरी बातो के लिए क्षमा करो । मेरे भावी अपराधों को मन में न लाकर मुझे अपने चरणो के निकट जगह दो । में सन्तो के घर का दास बनकर उनके द्वार-आगन में लोटूगा, क्योकि उनकी चरण-रज के लगने से मेरे वयालीस कुलो का उद्धार होगा । दुप्ट की सगति न हो । उससे भजन मे बाधा पडती है । हे विट्ठल, दुष्ट लोग तेरा निषेध करते है, मुझे यह विल्कुछ सहन नही होता । मै अकेला किस- किस से वाद-विवाद करू ? तेरे गुण गाऊँ या इन दुष्टो की खबर लू ? जिस पद में राम का नाम नही है, उसे सुनने मे मुझे कष्ट होता है । तेरा कहलाकर अब दूसरे का कहलाने मे मुझे लज्जा आती है । मुझे सर्वे- भाव से एक तू ही प्रिय है । मुझे सन्त-समागम और भगवान का नाम ही प्रिय है । मोक्ष की इच्छा यहा किसको हूँ ? में तो भगवान की सेवा ही मागता हूँ ।




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