सांख्यतरंगिणी | Saankhya Tarangini

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सांख्यतरंगिणी - Saankhya Tarangini

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अम्बिकादत्त व्यास - Ambikadatt Vyas

No Information available about अम्बिकादत्त व्यास - Ambikadatt Vyas

Add Infomation AboutAmbikadatt Vyas

रामदीन सिंह - Ramdin Singh

No Information available about रामदीन सिंह - Ramdin Singh

Add Infomation AboutRamdin Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ह३ ) य्दावतारकपिल छत हैं समालोचन करने से यह विदित हो | ता हैं कि पद्चशिसख ने सूच बनाये इसमें कोई संथय नं क्योंकि | वाचस्पतिसिथप्रदति इसके साक्षी हैं परन्तु साउसख्यप्रवचन- नामक सूचषछुध्यायो उनको बनाई है यछ म कदापि नहीं | क₹् सकते क्योंकि वाचस्प्रतिमिश्रप्रशति जिनको प्शिखक्षत | सूच समभ के उडत करते हैं वे इसमें नं मिलते घू । अब यह कम नहीं जान सकते कि कपिल से कितनो शिष्य परम्परा के अनन्तर इईश़रछष्ण कौ पारो आई । पर इनको बोल चाल से ये प्राचोनड्ों प्रगट छोवे हैं । ग्रस्य के आरख्थ में मफ़्लाचरण करना अथवा गुरु प्रदति को प्रणाम करना यू प्राचीन चाल नछों थो क्यों कि प्राचोन सूच भाष्यों में यद्ी रोति है और माघ, किरात, नेषघ तक यक्चौ अलुस्युत है । सूच्चों में प्राय: “अथ” अथवा “अधातः” आरम्भ में सिसता है % । व्याख्याकार लोग इसौ को मड़्लाथक लगाते हैं और इन्हीं दो तौन अक्षरों पर लस्वा चोछ़ा भाष्य बनाते लाते हैं । और | णसेडो वाचस्पतिमित्र ने भो प्रथम कारिका के “दुःखचयामि- घात” पद को सड़्लाधक करने का बलात्कार किया है । पर कपिल प्रयौता । इरय॑ तु दार्वियतिसूच्री तस्वः अपि बीजभता तस्या अपि वौजभुता | नारायदावतारमझइघिभगवत्कपिलप्रदी तैति हद्दा:” । कैनवम और दशम एष्ठ को टिप्पणी देखो। # यो० सू० “अथ योगाजुशासनम” व्या० भा “अिध श- | ब्दानुशासनम्‌” वे० द० सू० “अधातो धरमें व्याख्यास्याम:” शा० | सू+ “अधातों भक्ति लिज्ासा” व्या० सू० “अधातों अ्रह्मलिजा- सा” सा०« सू० “अथ त्रिविधदुःखत्यन्तनित्त्तिरत्यन्तपुरुषा ८थ:” |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now