श्रीमद राजचंद्र | Shrimad Raajchandra

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Shrimad Raajchandra by पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि बंता आवीप्तिकिके. वैलफेडलविसनिल नल कबनपकिम . धम .. ७म नकअर पत्रांक ३८१ आत्माका घर्म आत्मामें ध्यान देने योग्य बात २८२ ज्ञानी पुरुषके प्रति अधूरा निश्चय २८३ सच्ची ज्ञानदशासे दुःखकी निव॒त्ति ३८४ सबके प्रति समद्टि ३८५ महान पुरुषाका अभिप्राय ३८६ बीजजश्ञान ३८४ सुघारसके संबंधमें विषय-सूची पष्ठ देन डे५५ ३५६ ३५६ रे ५७ रे १.७ रेट डे ८-९ ३८८ इंइवरेच्छा और यथायोग्य समझकर मौनभाव ३६० ३८९ *' आतमभावना भावतां ”' ३९० सुघारतका माद्दात्म्य ३९१ गाथाऔओका झुद्ध अथ ३९२ स्वरूप सरल है २७ वाँ वर्ष २९३ शालिभद्र घनाभद्रका वेराग्य ३९४ वाणीका संयम ३९५ चित्तका संक्षेपमाव २९६ कविताका आत्माथके लिये आराघन ३९७ उपाधिकी विशेषता ३९८ संसारस्वरूपका वेदन ३९९ सब धर्माका आधार शांति ४०० कमेके भोगे बिना निदृत्ति नहीं ४०१ सुदर्शन सेठ ४०२ “ शिक्षापत्र' ४०३ दो प्रकारका पुरुषाथे ४०४ तीथकरका उपदेश ४०५ व्यावद्दारिक प्रसगौकी ४०६ षट्पद *४०६ (२) छह पद ४०४७ दो प्रकारके कम ४०८ संसारमं अधिक व्यवसाय करना योग्य नहीं *४०८ ( २,३,४ ) यह त्यागी भी नहीं ४०९ ग़हस्थमें नीतिपूवक चलना ४१० उपदेदाकी आकांक्षा ४११ ' योगवासिष्ट * ४१२ व्यवसायकों घटाना ४१३ वेराग्य उपदामकी प्रधानता उपदेशज्ञान और सिद्धांतज्ञान बा शी नचि्रनवानवन्ता *४ १३ (२) एक चैतन्य सब किस तरह घटता है ? ३७५ ' +४४० तीन बातोंका सेयम रेघ६० रेद्‌्शे रद रे ६२ २६२ श्प््‌ पत्रांक पट ४२४ साधुको पत्र समाचार आदि लिखनेका विधान ३७६-९ ४१५ साधघुकों पत्र समाचार आदि लिखनेका विधान २३७९-८१ ४१६ पंचमकाल--असंयती पूजा २८२ ४१७ नित्यनियम ३८२ ४१८ सिंद्धांतबोध और उपदेशबोधघ ३८३--५ ४१९ सेसारमं कठिनाईका अनुभव २८६ *४ १९ ( २ )आत्मपरिणामकी स्थिरता २८६ ४२० जीव और कर्मका संबंध ३८ ६-७ संसारी और सिद्ध जीवॉकी समानता ३८७ *४२० (२) जेनदर्शन और वेदान्त २८८ ४२१ वृत्तियोंके उपशमके लिये निकृत्तिकी आवश्यकता २८८ ४२२ शानी पुरुषकी आशाका आराघन ३२८९ अज्ञानकी व्याख्या २८५९-९० +४र९ (२) “नमो जिणाणे जिदमवाण ३९०-१ शे६२ रद्द रद दे दे दे दी ३६५ रद रद रेद्५ ६६ रेघ६७ ३ द७-९ ३६९ ३७०- ३७१ ३७२ ३७२ . ३७३ ३७३ ३७३ ३७४ ३७ ४-५ न न न ४रहे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीरवोंकि व्याघातसंबंधी प्रश्न २९१ ४२४ वेदांत और जिनसिद्धांतकी तुलना ३९२ ४२५ व्यवसायका प्रसंग ३९ ्टे ४२६ सत्संग-सद्दाचन ३९३ उर२७ व्यवसाय उष्णताका कारण ३९३ *४ २८ सदुरुकी उपासना ९४ ४२९ सत्संगमं भी प्रतिबद्ध बुद्धि ३९४ ४३० वैराग्य उपशम आनिके पश्चात्‌ आत्माके रूपित्व अरूपित्व आदिका विचार ३२५४ ४३१ पत्रलेखन आदिकी अदक्यता ३९४ ४३२ चित्तकी अस्थिरता ३९५ बनारसीदासकों आत्मानुभव ३९५ प्राररघका वेदन ३९६ ४३३ सत्पुरुषकी पहचान ३९७ ४३४ पद आदिके बचने विचारनेमेँं उपयोगका अमाव ३९८ ४२३२५ बाह्य माहदात्म्यकी अनिच्छा ३९९, सिद्धाकी अवगाहना ३९९-४०० *४३६ वेश्य-वेष और निग्नन्थभावसंबंधी विचार ४०० *४ ३७ व्यवद्दारका विस्तार ४०१ *४ २८ समाघान नर +४३५ देहमें ममत्वका अभाव ४०२ ४०२




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