पार्टी कॉमरेड | Party Komared

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Party Komared by यशपाल - Yashpal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about यशपाल - Yashpal

Add Infomation AboutYashpal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पार्टी काँमरेड ] १३ दृष्टि उस ओर गई । रेस्टोराँ में चाय पीने श्रानेवाली लड़की एक दूसरे नौजवान लड़के के साथ सड़क किनारे पटड़ी पर शखबार बेच रही थी! त्ते-जाते लोगों के सामने अखबार बढ़ाकर बह कहती--“प्लीज़ रीड पीपल्सण्ज !” और कभी गुजराती में कहती “जनयुग पढ़िये !* बेसे हो उसका साथी, उससे अधिक ऊँचे स्वर में पुकार पुकार कर श्र अखबार दिखा कर बिक्री कर रहा था। * क्यों भाई पण्डित ; अखबार खरीदोंगे ?”--सुकुल को सुना कर पुस्तूलाल ने पदमलाल को चुटकी ली--किहते थे न ?* “जैसे सेठ कहें”--सुकुल ने भावर्या की शोर देख सुस्करा दिया | मावरिया चुप-चाप खड़ा देखता रहा । लड़की उसी प्रकार आग्रह से अखबार बेचे जा रही थी । अखबार बिक जाने पर पेसे बढुये में ' डाल, दूसरी बांह के मीचे से नया अखबार ले फिर दिखाने लगती | भावर्यि आगे बढ़ गया । दस रुपये का एक नोट अखबार बेचनेवाली की ओर बढ़ा उसने कहा--दीजिये तो एक ठो !' गाहक की द्योर ध्यान न दे लड़की ने अखबार दे नोट से लिया त्और शेप रुपये चापिसि करने के लिये, श्रखबार दूसरी बांह के नीचे सम्माल, ब्रड्ा खोल ढटोलने लगी | नौ रुपये श्रौर चौदहद श्राने जल्दी महीं मिल रहे थे 1 “जाने भी दीजिये हो जायगा*--उपेक्ञा दिखा भावरिया से कहा । उब लड़की ने भावरिया की ओर देखा श्र कुछ भेंप गई । मावस्ति अखबार को समेय्ता हुआ, पुचूलाल को चुनोती की दृष्टि से देखता सौर छाया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now