जीवन - निर्वाह | Jeevan - Nirvah

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Jeevan - Nirvah by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ सचुष्यका मचुष्यत्व 3 नएएर८22852202.न ' सूप जादिका पशजीबवनसे उन्नति करते करते मनुष्यत्व प्राप्त करनेका प्रवोक्त वर्णन माढूम हो जानेपर यह बात सहज ही समझी जा सकती हैं कि मनुष्योंको अपना मनुष्यत्व कायम रखने और आगेको उसे अधिकाधिक उन्नत करनेके ठिए कौन कौनसे कत्तेव्य पालन करने चाहिए । क्योंकि जिन सब बातोंकी बदौलत मनुष्यको अपने जीवन-निर्वाहकी अनेक उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होने छगीं, तथा जिनकी बदौठत उसका जीवन पशुजीवनसे सर्वेथा भिन्न होकर अत्यन्त सुखमय तथा परम श्रेष्ठ बन गया, उन सब बातोंकी रक्षा करना और उनको उन्नत बनाना मनुष्य-जीवनका मुख्य कत्तेव्य हैं-और उनसे ही उसके मनुष्यत्वकी रक्षा हो सकती हैं । उक्त वातोंको हम तीन श्रेणियोंमें विभक्त करते हैं-(१) चिचारदक्ति--जिसके द्वारा मनुष्य. अपनी उन्नति और सुखशान्तिके ब्रद्धानेवाले नवीन उपायोंको खोजता ओर प्राचीन असुविधाजनक तरीकोंको छोड़ता जाता हैं । ( २ ) वचनशक्ति--जिसके द्वारा वालकों तथा नवयुवकोंको अपनेसे बडे तथा अनुभवी पुरुषोंकी जानी वूझी हुई बातें मादूम होती रहती हैं;- और आगे चठकर जब ये ही बालक तथा नवयुवक सयाने होते हैं या प़िदृपदको पाते हैं तब वे अपने पू्वेजोंकी सुनी हुईं और अपनी बुद्धि तथा अजुभवसे प्राप्त की इुइं वातोंकों अपने बच्चोंको सनाते या सिखाते हैं। इस प्रकार इस बातचीत करनेकी शक्तिकी बदौछत मनुष्य उन सब लोगोंकी खोजी हुई वातोंकों जानता रहता हैं कि जो उससे सेंकडों-हजारों पीढ़ी पहले उत्पन्न हुए थे । नवीन लोग प्राचीन लोगोंके अनुभवसे जानी हुई वातोंमें अपनी चुद्धिको लडाकर कुछ




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