मार्क्सवाद | Marksavad
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समाजवादी बिचारों का झारम्भ ] श्र
जिस देश और समाज में झ्ौद्योगिक विकास झधिक तेज़ी से हुच्ा
वहाँ यह विषसता भी श्रधिक तेज़ी से और श्धिक उम्र रूप सें आई ।
भारत की अपेक्षा योरुप में श्रोर योरुप के और देशों की अपेक्षा फ्रांस
और इंगलैरड में श्रौद्योगिक विकास तेज़ी से हुझ्ना इसलिए वहाँ ही
इस विषसता ने और इस विपमता के कारण पैदा होनेवाले परिणामों
ने सब से प्रथम श्रपना रूप दिखाया श्रोर समाजवादी भावना को
जन्म दिया
मनुष्य की द्ाधिक अवस्था में समानता लाने के लिये समाज की
व्यवस्था में परिवतन करने की जो विचारधारा झ्राज दिन ससाजवाद
या माक्स वाद के नाम से सारे सामने आरा रद्दी है, उसे श्रसेक व्यक्ति
भारतीय वातावरण श्र संस्कृति वे लिये विदेशी श्ौर अनुपयुक्त सम-
सते ईैं। उनकी दृष्टि में इस देश की परिस्थितियों सें समाजवाद की
रविदेशी विचारधारा के लिये गंजाइश नहीं । इसमें सन्देट नहीं कि
ससाजवाद दी विचारधारा एहले पश्चिम में ही विकसित हुई श्रोर वहीं
से इसका प्रचार चढ़ा । पश्चिमःके देशों में ऐसी विचारधारा पैदा करने-
वाली परिस्थितियाँ भारत से पहले पदा हुई परन्तु समय शुज़रने के
साथ वह परिस्थितियां रस देश में भी उत्पन्न हो गई हैं। इसलिये भारत
का ध्यान भी उस द्ोर उतने ही वेग से जा रहा है ।
सन्तों का साम्यदाद--
समता या साग्यदाद मारत दी पुरानी चीज़ ई। दया, धरम दौर
सनुष्यता के नाते समानता की भावना सनुप्य-समाज में बहुत एसनी
है।इस इृष्टि से समानता और साम्यदाद के श्ादश बा उपदेश
देनेवालों की इस देश में कमी नहीं बट्कि ब्धिकता ही रही है। इस
प्रकार का साम्यवाद जिसे दस सन्त का साम्यवाद कह सकते हैं, हपि
और व्यापार के कारण उत्पप्न होनेडाली घससानता दे दुग दी चीज
थी । परन्द पंदावार के साधना सम उचात टो जान से, सचुष्य सदुष्य दा
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