जय - दोल | Jay - Dol

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पठारका धीरज हाथीकी पीठपर खड़े राजकुमारने शरीरकों साथा, फ़िर एक सुन्दर... गोल रेखाकार बनाता छुआ पानीमें कूद गया, क्षण भरमे तेरकर पार जा पहुंचा; दोनो साथ-साथ तेरने छगे | “सहेसा, तुम आज उदास क्यों हो ? तुम्हारा अग-वालन शिथिल क्यो है ””? “नहीं तो । कया में बराबर साथ-साथ नहीं तेर रही हूँ ?' “हा, पर. वह र्फूर्ति नहीं है ''नहदीं-नहीं, मैं तो बहुत प्रसन्न हूँ । मेरी तो आज सगाई हो गई है-” “प्क्या * राजकुमारी देमा--क्या कहती हो तुम ९ ठट्टा मत करो-- कुंवर तैरता हुआ रुक गया | हेमाने सककर उसे भरपूर देखते हुए कहीं, “हॉ; आज तिलक हो गया ।”” क '“कौन--किसके साथ * तुम कैसे मान सकीं ?” हेमाने धीरे-धीरे कहा; “मैं राजकुमारी हूँ । ऐसी बातोंमें राजकुमा- स्योकी राय नहीं पूछी जाती । साधारण कन्याएँ, राय देती होंगी, पर हमारा जीवन राज्यके कल्याणके पीछे चलता हैं |”? “पर हमारा कल्याण--' “वह उसीसे पाना होगा । अपना अलग दानि-लाभ सोचना च्त्रिय- चृत्ति नहीं है, वेसा तो बनिये--”' 'प्यदद सब तुम्हें किसने कहा हैं ?”? 'पमेरी शिक्षा यही है-- टोनों किनारेकी ओर बढ रहे थे। कुँवरने पककर सीढीको जा पकड़ा, और बाहर निकलकर उसपर जा बेठा । हेमा भी निकलकर पास खडी हो गयी । शरीरसे चिपकते गीले कपडोंके कारण वह और भी पुतछी-सी दीख रही थी, गोरोचनका रंग और चमक आया था ।




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