जय - दोल | Jay - Dol
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पठारका धीरज
हाथीकी पीठपर खड़े राजकुमारने शरीरकों साथा, फ़िर एक सुन्दर...
गोल रेखाकार बनाता छुआ पानीमें कूद गया, क्षण भरमे तेरकर पार जा
पहुंचा; दोनो साथ-साथ तेरने छगे |
“सहेसा, तुम आज उदास क्यों हो ? तुम्हारा अग-वालन शिथिल
क्यो है ””?
“नहीं तो । कया में बराबर साथ-साथ नहीं तेर रही हूँ ?'
“हा, पर. वह र्फूर्ति नहीं है
''नहदीं-नहीं, मैं तो बहुत प्रसन्न हूँ । मेरी तो आज सगाई हो गई है-”
“प्क्या * राजकुमारी देमा--क्या कहती हो तुम ९ ठट्टा मत करो--
कुंवर तैरता हुआ रुक गया |
हेमाने सककर उसे भरपूर देखते हुए कहीं, “हॉ; आज तिलक हो
गया ।”” क
'“कौन--किसके साथ * तुम कैसे मान सकीं ?”
हेमाने धीरे-धीरे कहा; “मैं राजकुमारी हूँ । ऐसी बातोंमें राजकुमा-
स्योकी राय नहीं पूछी जाती । साधारण कन्याएँ, राय देती होंगी, पर
हमारा जीवन राज्यके कल्याणके पीछे चलता हैं |”?
“पर हमारा कल्याण--'
“वह उसीसे पाना होगा । अपना अलग दानि-लाभ सोचना च्त्रिय-
चृत्ति नहीं है, वेसा तो बनिये--”'
'प्यदद सब तुम्हें किसने कहा हैं ?”?
'पमेरी शिक्षा यही है--
टोनों किनारेकी ओर बढ रहे थे। कुँवरने पककर सीढीको जा पकड़ा,
और बाहर निकलकर उसपर जा बेठा । हेमा भी निकलकर पास खडी हो
गयी । शरीरसे चिपकते गीले कपडोंके कारण वह और भी पुतछी-सी दीख
रही थी, गोरोचनका रंग और चमक आया था ।
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