समालोचना समुच्चय | Samalochana Samuchchay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : समालोचना समुच्चय  - Samalochana Samuchchay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

Add Infomation AboutMahaveerprasad Dvivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्० समातलोचना-समुच्चय उन्हें वे बराबर ईश्वर, परमेश्वर योर परमात्सा भी कहती थाई हैं। ध्रतपव उनके प्रेम के सम्बन्ध में दुर्भावना के लिए मुतलक ही जगदद नहीं । जिस मगवदुगीता के परम पशिडत भी संसार में सबसे घ्धिक महत्व की पुस्तक समझते हैं उसी में कृष्ण भगघान्‌ ने खुद ही कहा है- में यथा मां प्रपचन्ते तांस्तथेव सजाम्यद्म्‌ । घ्यतएच गापियें ने यदि पतिभाव से उनका भजन किया ते क्या काई राज़ब की बात होगई ? उन्हें ब्दी भाव प्रिय था । कंस घोर शिषशुपाल श्रादि ने उन्हें धर साथ से देखा था । कृष्ण ने उनके उस माष का भी झ्ादर ही किया श्र उन्हें घड़ी फल दिया जा श्न्य भाष के साघकों को प्राप्त होता है। परमात्मा होकर कृष्ण जब स्वयं हो कद्द रहे हैं कि जा जिस भाव से मेरा भजन करता है में उसे उसी भाष से ग्रहण करता हूँ तत्र शट्टा श्बौर सन्देद के लिए जग कहाँ ? घ्च्छा, इन गेापियों के पिता, पुत्र, पति झादि कुटुम्ची छाष्ण को क्या समभतें थे ? जिस कुमार कृष्ण ने बड़े बड़े देत्यां का न सद्दी, श्रपने से अनेक गुने बली श्यौर पराक्रमी कैणी, बक, घ्घ ध्ादि प्राशियों को पछाड़ दिया; जिसने कालिय के सद्रश महाविषघर धिकराल नाग का द्प-दलन कर दिया; शोर जिसने गाबद्धन-पंच॑त के हाथ पर उठा लिया उसे यदि वे परमात्मा नसमसकते थे तो काई बहुत बड़ा पराक्रमी: मरभुत्ावान श्योर महत्वशाली पुरुष ज़रूर ही समझते थे।। तभी उन्होंने श्रपने कुटुम्ब की ख्त्रियां. के रृप्ण से प्रेम करते देख उनकी घिशेष रेकटोंक नहीं को । यदि करते ता यह कदापि सम्भव न था कि सैकड़ों ख्रियाँ उस रात के इस तरह अपने घपने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now