श्रीमद्भग्वतीसूत्रम भाग ५ | Shreemadbhagwati Sutram Bhaag 5

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Shreemadbhagwati Sutram Bhaag 5  by बालचन्द श्रीश्रीमाल - Balchand Shreeshreemal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'.[ ११४४] ......'..'. + .. :झायुष्य बन्घ : से टुकड़े पमिठे हैं। इससे डकड़ें मत फिंकवाओ । राजा ऐसे 'संब भिख्रारियों को निकालता जाता था ।. ब्माखिर एक भिखि प्वार. पर आया । उससे भी यही बांत॑ कहीं गडे । उसने सोचा राजा कहता है तो टुकड़े फेंक देना . अच्छा है, राज्य चहि मिले यां न सिढे ! ऐसा सोच -कर, उसने .. सब टुकड़े फक॑ दिये । राजा न से बिठा लिया । .. . उसके पश्चात्‌ राजन उसी क्रम . से फिर . भिखाररियों को . ' , निकाठना.आरंभ. किया । कुछ सिखारियों. के. पश्चात्‌ एक -सिखारी आया: । ढुकड़े फेंकने के .लिए ,क़दने पर उसने सोचा:-'राज़ा ' : कहता हैं, राउय. दूँगा । झगर इसने राज्य न दिया तो अभी-अभी .भूखों मरना पड़ेगा. । फिर भी..राजा. की बात पर अविश्वास करना. ठीक नहीं है । उसने कहा--'में सब डुक़ड़े : तो. . नहीं फेंकूँगा, .हां.. : कुछ रख लैूंगा ।” राजान कहा-'“जेसी तुम्दारा इच्छा हो, करो । : मिखारी ने अच्छ-अच्छे कुछ डुकड़े रख लिये : और शेष, फैंक . '. दिये । राजा .ने उसे भी . बेठा लिया और सब भिखाएरियों. को मी छोड़ेंदियों। '. ' ' .. . : .; _. दूसरे दिन राजी ने पदलें भिखारी को राजा आर दूसरे _ को, प्रधान बना दिया । राजा बना हुआ भिखारी सोचने छगा : '. डकड़ें यांगने से मुझे राज्य मिला है, इसलिए अब और अधिक त्याग करना चाहिए । अंधान .बना हुआ मसिखारी सोचता था,




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