रेल का टिकट | Rel Ka Tikat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rel Ka Tikat by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Aanand Kausalyaayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भदंत आनंद कौसल्यायन -Bhadant Aanand Kausalyayan

Add Infomation AboutBhadant Aanand Kausalyayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शादी ६ है। पंजाब में लोग हज़ारों सांगते हैं । मेंने सोचा इधर से कोई मिल जाय तो में भी ले जाकर अपनी गृहस्थी वसा लूँ ।”” बात सच्ची थी । पंजाब में लड़कियों की सचमुच कमी है, उसी प्रकार जैसे बंगाल में अधिकता । मुझे बारह चप पुरानी वात याद था गई । चटाला (लि गुरदासपुर) में एक हिन्दु-सहायक सभा थी, जिसका उद्देश्य था भ्पहत लड़कियों को गुरडों के चंगुल से छुड़ाना और योग्य उयक्तियों से शादी करा देना । उस सभा की थ्ोर से जब कभी किसी भी लड़की के लिये “पतियों की ावश्यकता है” का इशतहार छुपत्ता सो श्रप्ियों का ढेर लग जाता । सभा के मेम्यरों को कोई चन्दा न देना पढ़ता । ऐसे भावी-पतियों के 'दान' की कृपा से ही सभा का कोप कभी खाली न रहता । उसने मुझे छुछ सोचता देख प्रश्न दोहराया-- “तो अकोला में कोई विधवा झ्राथम हैं ?”” “एक नहीं, सुना है अनेक हैं, किन्तु थे व्यापार के अडड हूं ।”” जीवन के कट ऑ्रनुभवों में अकोला का भी एक कट अनुभव है । हमारे यहाँ का एक लड़का झ्रपने किसी सम्बन्धी से अकोला सिलमे गया । उसे पता लगा था कि सोलह सन्रह वर्ष पहले गाँव से भागा इच्ा उसका मामा अकोला पहुँचकर धनी हो गया है । जाकर देखा सचसुच-- संकड़ों रुपयों की चाय पी-पिलाई जा रही है। खाने-पीने की थोड़ी सुधिघा देख वह लड़का भी दो-चार दिन और वहीं रह गया । एक दिन पुलिस ने उसके मामा साहब को घर दबाया । लड़का भी चपेट में श्रा गया । बड़ी कठिनाई से कुछ सौ रुपये खचं करके लड़का छुड़ाया जा सका । पुलिस का कहना था कि लड़के को छोड़ देंगे तो हमारा सारा केस ही कमज़ोर पड़ जायगा 1 तब तक आगन्तुक ने फिर श्पना प्रश्न दोहराया । ऐसी सामाजिक समस्या से दूर-दूर रहने के झ्रादी सन को ग्रक्न ्रच्छा नहीं लगा । इस चार उसने पूछा-'तो कितने तक कास चन जा सकता हु ?'*




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now