रवीन्द्र - साहित्य भाग - 9-10 | Ravindra -sahity Bhag - 9-10

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Ravindra -sahity Bhag - 9-10  by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रवीन्द्र-साहित्य : भाग ६-१० रूप रखना तय किया ।. इससे फिलद्दाल कुछ दिनोंके लिए तो उसे चिन्ता-फिकरसे छुटकारा सिल दही जायगा 1 रमेशने कमलासे पूछा--“कमला; तुम और पढोगी ?” हँ रमेशके मु दकी ओर देखती रही, जिसके मानी थे; 'तुम्दारी क्या राय है ?” रमेशने पढने-लिखनेके फायदे और सहूलिग्रतोंके बारेमें वहुत-सी बातें कहीं; द्वालाँ कि उसकी कोई जरूरत नददीं थी । कमलाने कहद्दा--“मुझे तुम पढ़ा दो ।” रमेशने कद्दा--“तो फिर तुम्हे स्कूल जाना पढ़ेगा ।” कमला अचमेमें पढ़ गई; वोलो--“इत्कूलमें | इतनी बढ़ी लड़की होकर में इत्कूल जाउंगी ?” कमलाकों अपनी उमरके बारेमे इतना खपाल है देखकर रमेशको जरा हँसी आ गई , वोला--“तुमसे सी बहुत बढ़ी-वढ़ी लड़कियाँ वर्दी पढ़ने जाया करती हैं ।” दर कमलाने इसके बाद फिर कुछ नद्दीं कहा ।. गाड़ीमे वेठकर रमेशके साथ एक दिन वह स्कूरू गई ।. बड़ा-मारी मकान है , और, उससे भी बहुत बढ़ी और छोटी इतनी लड़कियाँ व्दीं हैं कि जिनको झुमार नहीं ।. स्कूलकी हेड मिस्ट्रेसके दाय क्मछाकों सौपकर रमेश जब वापस आने लगा, तो कमला भी उसके साथ-साथ आने लगी । रमेदाने कद्दा--“'तुम कहाँ जा रद्दी दो ? तुम्दें तो यहीं रदना है न |” कमला डरे हुए स्व॒रमें बोली--'तुम यहाँ नहीं रदोगे १ रमेश--'मैं तो यहाँ रह नददीं सकता ।” कमलाने रमेशका द्ाय थाम लिया, बोली--''तव में यहाँ नहीं रद्द सकूं गो; मुझे ले '्वलो 1” रमेशने उसका द्ाथ छुड़ाते हुए कद्दा--'छि' कमला |” इस विक्कारसे कमला सन्न द्ोकर व्दौकी वहीं खड़ो रद्द गई, उसका मुंह इतना-सा हो गया । रमेश बहुत ही दु खित दोकर सटपट चल तो दिया वर्ष; पर कमलकि उस दरे-हुए असद्दाय सुखड़ेको वह न भूल सका; उसकी तसवीर उसके सनमें जमकर टेठ गई ।




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