पहिये की धुरी | Pahiye Ki Dhuri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ह
* दिनके-तिनके में भविष्य की अपार संभाव्यताओं को निमंत्रण देते हुए
_ याया; पत्र-पल्लव की प्रत्येक सर्मर-ध्वनि में आत्मा की पुकार छनी; और .
“उन्होंने मंड-सुग्ध होकर प्रकृति से तादात्म्य स्थापित दिया । उनके मन
की यही गहन अनुभति कहीं आशा बनी, कहीं विश्वास, कहीं आनंद की
: नूपुर-ध्वनि बनी, कहीं उल्लास का उन्मुक्त नृत्य; कहीं अंतश्चतना के
: प्रॉजल विकास की वाणी बनी) कहीं वाणी के मसर्म का सलोसुरघकारी
: पराग; कहीं इस पराग की आग; कहीं इस आय के सीतर बसनेवाला
.. असर-अनुराग । आया ने पहली बार; इसी पवित्र भू-खंड पर; बाह्म विश्व
. के आलोकसय दर्पण में अपने हृदय और मस्तिप्क के संपूर्ण सो दय को
. प्रतिबिबित पाया, और बाह्य विश्व के समस्त वेसव को अपनी संगीत-
.मयी साँसों पर थिरकते हुए देख-इस अनुभति से उस साहित्य का
आचिर्माव हुआ; जिसके समकक्ष. स्थान पानेदाला साहित्य संसार के
किसी भाग में नहीं पाया जाता । इसी अवुभति से प्रंरणा पाकर सनुप्य
ने सर्वप्रथम, अपने मन के अनुरूप; देवता और देवत्वका निमाण किया 1
सुप्रसिद्ध दाशनिक डा० राधाकष्णन् के सतानुसार सानव-मस्तिप्क की एसी
देन, सानव-हृद्य की अनुभूतियों का ऐसा छृतित्व अन्यत्र देखने को नहीं
'सिखता 1.
स्पष्ट है, मानव-मन की अनुभतियाँ ही असिव्यक्ति का रुप घारण ..
करती हैं । तब साहित्य-कला का निमांण होता है । नृत्य-कला और
संगीत-कला के मूल में भी यही तथ्य हैं । परंतु इसका यह अथ नहीं कि
साहित्य तथा कला में सौंदर्य, आनंद एवं <र्लास के अतिरिक्त किसी
अन्य रागास्सिका बृत्ति की असिव्यंजना की गुंजाइश नहीं है । सत्य तो
यह है कि दुःख और पीड़ा की अभिव्यक्ति के भी दो पक्ष होत हैं । एक
: है उसका कलापक्ष, यथार्थ और जआादुर्श। दूसरा हैं उसका आध्यात्मिक
व्यृक्ष । उत्कष्टता की दृष्टि से दोनो में आत्मा का प्रतिबिदबन अपन्तित है ।
श्रतिकूल परिस्थिठियों के प्रतिबिबन में भी आत्मा के सौंदर्य का दर्शन
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