पहिये की धुरी | Pahiye Ki Dhuri

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Pahiye Ki Dhuri by केदारनाथ मिश्र - Kedarnath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह * दिनके-तिनके में भविष्य की अपार संभाव्यताओं को निमंत्रण देते हुए _ याया; पत्र-पल्लव की प्रत्येक सर्मर-ध्वनि में आत्मा की पुकार छनी; और . “उन्होंने मंड-सुग्ध होकर प्रकृति से तादात्म्य स्थापित दिया । उनके मन की यही गहन अनुभति कहीं आशा बनी, कहीं विश्वास, कहीं आनंद की : नूपुर-ध्वनि बनी, कहीं उल्लास का उन्मुक्त नृत्य; कहीं अंतश्चतना के : प्रॉजल विकास की वाणी बनी) कहीं वाणी के मसर्म का सलोसुरघकारी : पराग; कहीं इस पराग की आग; कहीं इस आय के सीतर बसनेवाला .. असर-अनुराग । आया ने पहली बार; इसी पवित्र भू-खंड पर; बाह्म विश्व . के आलोकसय दर्पण में अपने हृदय और मस्तिप्क के संपूर्ण सो दय को . प्रतिबिबित पाया, और बाह्य विश्व के समस्त वेसव को अपनी संगीत- .मयी साँसों पर थिरकते हुए देख-इस अनुभति से उस साहित्य का आचिर्माव हुआ; जिसके समकक्ष. स्थान पानेदाला साहित्य संसार के किसी भाग में नहीं पाया जाता । इसी अवुभति से प्रंरणा पाकर सनुप्य ने सर्वप्रथम, अपने मन के अनुरूप; देवता और देवत्वका निमाण किया 1 सुप्रसिद्ध दाशनिक डा० राधाकष्णन्‌ के सतानुसार सानव-मस्तिप्क की एसी देन, सानव-हृद्य की अनुभूतियों का ऐसा छृतित्व अन्यत्र देखने को नहीं 'सिखता 1. स्पष्ट है, मानव-मन की अनुभतियाँ ही असिव्यक्ति का रुप घारण .. करती हैं । तब साहित्य-कला का निमांण होता है । नृत्य-कला और संगीत-कला के मूल में भी यही तथ्य हैं । परंतु इसका यह अथ नहीं कि साहित्य तथा कला में सौंदर्य, आनंद एवं <र्लास के अतिरिक्त किसी अन्य रागास्सिका बृत्ति की असिव्यंजना की गुंजाइश नहीं है । सत्य तो यह है कि दुःख और पीड़ा की अभिव्यक्ति के भी दो पक्ष होत हैं । एक : है उसका कलापक्ष, यथार्थ और जआादुर्श। दूसरा हैं उसका आध्यात्मिक व्यृक्ष । उत्कष्टता की दृष्टि से दोनो में आत्मा का प्रतिबिदबन अपन्तित है । श्रतिकूल परिस्थिठियों के प्रतिबिबन में भी आत्मा के सौंदर्य का दर्शन




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