आवर्त्त | Aavartt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धारा की श्रा्मा है श्रपनी ; तट को श्रपती प्यास है , दोनों चिर-साथी ; फिर भो अ्पना-ग्रपता विश्वास है। अनजाना परदेशी कोई लक्ष्य बना है धार का, मौन खड़ा तट, देख रहा है अवसर शअ्रपने प्यार का, तन से जितने निकट यहां, मन से उतने ही दूर हैं, श्रपनी-श्रपनी सोमाग्रों में दोनों ही. मजबूर हैं हर उच्छवास विवदया अपने में पाल रहा निःद्वास है । धारा की आाद्या है श्रपनी ; तट की श्रपनी प्यास हैं दोनों चिर-साथी ; फिर भी श्रपना-म्रपता बिस्यास है ! [ध्रावतें थ्]




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