चतुर्भाणी | Chatrubharnee

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Chatrubharnee by डॉ मोतीचंद्र - Dr. Motichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द चतुर्भाणी तौर काशिका से कोई प्रमाण नहीं है । पतजलि ने (५.३।१४) भी इसका अच्छे ही तय मे प्रयोग किया है । मम्मट ने सबसे पहले देवानाप्रिय का प्रयोग मूख के अर्थ सें किया है । नाटक के श्न्त से सृदग का प्रयोग सी. पश्मप्राभतकम ( पृ १४ ) के प्राचीन होने का प्रमाण है । श्री बरो ने तो अनेक ऐसे प्रमाण उपस्थित किए; है जिनके द्राधार पर पादताडितकमू का समय निशिचत किया जा सकता है । भाण का स्थान सावभौम नगर है । बरो का विचार है कि सार्वभौम नरेश से यहाँ चन्द्रगु् द्वितीय का मतजुब है । भाण में शकों श्र एक जगह हू्णों का भी उल्लेख है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि चन्द्रयुस द्वारा मालव, सुराप्ट्र दौर पश्चिमी प्रदेशों के जीतने के बाद च्टन द्वारा स्थापित उज्जैन के शक वश का खातमा हो गया । यह घटना चौथी सदी के अंतिम दशक में घटी सानी जाती है । भारतीय इतिहास में हूणा का प्रवेश पाचवी सदी के अन्त में हुआ तर उनके भयकर घावों से स्कन्दगुप्त ने किसी तरह से देश की रक्ता की । इसलिए यह सम्भव है कि श्यामिलक जिसे शक श्र हू दोनो का पता था शायद पाँचवीं सदी के अ्रारमभ में हुआ | श्री बरो ने हमारा ब्यान मददाप्रतीह्ार भद्रायुव की ओर भी आकर्षित किया है । पादताडितकम्‌ में उसे उत्तर के कारूप-मलद और बाह्वीकों का स्वामी कहा है ( प्र० १६३ ) | लादा मे शायद बहुत दिनों तक रहने से वह य वा ज और स का श उद्चारण करता था | शप- रात, शक दौर मालव के रानाद्यो को जीतने के बाद अपनी माता श्रौर मा गगा के पास आकर उसने मगध राजदुल की लदमी का प्रताप बढाया । अपरात की ललनाएँ ताल परिचष्रित सिघु के किनारे पेडो पर चढी लताएँ पकड कर उसका यशोगीत गाती थीं । उपर्युक्त वर्णन से कई बातों का पता वबलता है । भद्वायुध उत्तर में बाह्वीकों शरीर कारूश मलद ( जिनसे त्रिटार मे शाहाबाद आर हजारीबाग जिलो का बोध होता है ) का स्वामी था तथा उसने मगब राज के लिये, जिसके चन्द्रगुप्त द्वितीय होने में बहुत कम सदेद न, मालव, शक श्र अपगत को जीता था | इस श्ाधार पर पादताडितकम्‌ की रचना या तो चन्द्रगुम द्वितीय के राज्य के अन्त से हुई होगी या कुमारगुम के राज्य के घारम्भ में । शक कुमार जयतक (पू० २३६) शोर जयनठटक (प्र० १६०) के उल्लेख से पता चलता है कि मालब-मुगए्र विजय के बाठ भी कुछ शक सामन्त बच गए थे । सेनापति सेनक का पुत्र मड़िमघवर्मा, जिसने एंसा लगता है कि चन्द्रमुस द्वितीय को विजय यात्रा में अपना राय्य 4 टीन बरों (1, छाए), श्यामिलक कत्त पादताडितक का समय ( दी डेट आफ स्यामिलक्सू पादताडितक > जे, बार ए एस, १६४६, पू० धेदनाकदे | रे श्री बरो पाइताढितक्म्‌ के स्लोक “४ की तुलना स्फन्डगुप्त के भीतरी वाले ढेख की. निम्नलिखित पन्रयिों। से करते हे पितरि दिवसुपेते विस्छुता चशलचमी शुनवलबिजितास्यिं: प्रतिष्टाय भूय । तोपान्‌ सातर सास्नेत्रा हतरिपुरिव कृप्णों टेवकीम+युपेत: ॥ पं पं थी ला ड. यरो, वही, ए० ४६ ।




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