नई तालीम | Nai Talim

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Nai Talim by देवीप्रसाद मनमोहन - Deviprasad Manmohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मार्ज री: साइ वस नीछमिरि पहाड़ों में कोटर्गिरि नामक स्थान पर पहला नई तालीम पारिवारिक शिविर आन्घ्र के अखिड भारत सर्वोदम सम्मे- लन के एकदम बाद शुरू हुआ मोर अप्रेठ २३ हा. से मई २० ता, तक चार हफ्ते चला । दूसरा शिविर २० सई को ही शुरू हुआ और १० जून को उसकी समाप्ति हुई । यह पहले से कुछ कम असें वा रहा वयोकि करोद करीब सभी सदस्यों को जून १२ और १५ के बीच अपने अपने विद्यालयों में वापस जाना था । प्रत्येक शिविर के लिये आठ विद्यार्थी चुने गये, लेकिन असल में दोनो में संख्या सात ही रही । इस छोटे समाज में जो घनिप्ठता होती है उसको हम सब से बहुत मूत्यवान्‌ पाया । बिद्याधियों ने ऐसा महष्वूस किया कि एक दूसरे के इस निकट सकं से उन्हें उतना हो सीखने को मिला जितना कि घोजना वद्ध श्वर्चा वर्गों से । पहले दल में छ. भाई और दो बहनें थी, सूप में, न्पत ्मह, और, प्यत, प्फ्छों-हीबं, में भो शामिल हु) + पहले शिविर में बंगला, हित्दी, मलयालम और तमिल भाषा भाषी लोग थे, आपसी व्यवहार के लिये भग्रेजी गौर हिन्दी का करीब करीब बसबर ही इस्तेमाल होता था । दूसरे शिविर में सब की सामान्य भाषा हिस्दी नीलगिरि पहाड़ों में एक नई तालीप पर्विर हो रही, पुछ तमिल भी । शिविर के देतिक जीवन का विवरण प्रह्येव सदस्य बारी थारी से छिसता था । यह हिर्दी, तमिल या भप्रेजी में लिपा गया जो कि इस काम के लिए हमारी गमधिकृत” भाषाएं थी । कुछ मित्रो ने यह आशा प्रकट की थी कि दक्षिण में चलने दाला इस तरह का केस्द्र वही एकान्त रूप से दाझषिणात्य न बने । मुझे यह बहने में बहुत हो खुद्ी है कि यह आझका गलत साबित हुई । उल्टा, मेरी अपनी माथा यह थी और वह सफल भी हुई कि एक अखिल भारत दृष्टिकोण वाला केन्द्र, जिसकी भौगो- लिक स्थिति दक्षिण में होगी, अपनी हो खास अहमियत रखेगा । बरीब एक हपते तक के प्रयोगों के बाद हमने इस प्रकार के दैनिक वार्यक्रम को सब से उपयुक्त पाया- ५ बजें से ७०३० बजे तत-उठना, सन्ध्याः वन्दन गौर सवा या डेढ़ घण्टे का दारीरश्रम । दस, सफ़र, परिश्यर बे, पे, सहसरप सफाह,, नात्ता, बनाना और दुपहर के झोजन की पूर्व तैयारी भी कर लेते हें, बाकी लोग खेत में काम बरते हैं। इसके वाद हम सब नाइता वार लेते है । ८-१५-१२-१५ इस समय का पहला 'घण्टा सारे श्रशिक्षार्दी एकसाथ किसी उत्पादक श्रम श्द




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