विवेकानन्द शताब्दी - जयन्ती ग्रन्थमाला | Vivekanand Shatabadi Jayanti Granthmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युगावतार श्रीरामछुप्ण छछ देखा और मे मधुर वचन बोले, “शुदिराम मैं तुम्हारी मक्ति से अत्यन्त प्रसन्न हूँ। पुष्र के रूप में तु्दारे घर में आकर मैं तुग्दारी सेवा प्रदण करूंगा ।” एक व एक नींद खुछ गई और क्दिगम स्तम्मित और आनन्द से रोमांचित हो गये । इस अप्रत्याशित सौमाग्व की वात सोचते हुये उनके गानन्द के भाषू बद चले । वे सोचने दंगे कि कया यह मी संमब दै कि मेरे जेसे मयण्य द्रिद्र ज्राझग की ऊुटिया में तीनों छोक के प्रभु आऔमगवान खर्य पुम के रूप में प्रकट दो नर छीला करेंगे और सारे विव्व के छोग इंस दिव्य छीला के दर्शनों से धन्य और कृता ये दो ल्ायेगे। गयांजी से लौटने पर झुदिसम को उनकी घर्मपरायणा पत्नी ने बताया कि ब्र बे शुटिराम) अनुपस्थित थे, एक दिन गावुकी घनी छोहारीन ठे अपनी कदिया के निकड मुगियों के शिव मंदिर के सामने बह मातें. अपनी कुटिया के निकड युणियों के शिव मंदिर के सामने बह सात कर री थीं कि सकस्पात देव दिदेव प्रदादेव के अंग से ररग के आकार, रही थीं कि झकरपात देव दिदेव महादेव के अग से हर के आकार दा दवी- सिम निगत होकर उनके अरीर में मगर हुई।_ बर, एक देवी रद्मि निगत होकर उनके शरीर में धविए दुई। मेदोश हो गयी । सभी से लन्दा देवी को यह मोध होने लगा कि दें गर्म रह गया है । _ उठी समय से सदा अलौकिक दिव्य डृश्य मी « उनके समन उपसित होकर उन्हें कमी अचम्मित, कभी पुरकित और आनन्द से विंदल बना देते ये । यद सब सुन कर क्षुदिराम के मन मैं सन्देद न रदा कि गयाजी में स्वप्त में लो परमपुषषप की वाणी उन्होंने सुनी थी, बद स्व होने खा रही भी। भुक्तप्रर शदिराम और शुद्ध वस्नि चना देवी अपने झराष्य देव श्री खुदीर के दारणागर लेकर भी मगवान के आविर्माव की पवित्र घड़ी की प्रतीला करते ढगे। 'ऋतुगाज बसंत के आगमन से प्रकृति देवी दिव्य झोमा से सुशोभिव दो रदी है ।. सभी दिदाओं में आनन्द की छह उठ रही हैं। लता चूश सुशौमित ऑम्यदेवी का एकास्त शास्त ।निकेतन कोयल की मधुर




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