तुगलुक कालीन भारत भाग २ | Tugluk Kalin Bharat Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर. उसने यह सिद्ध वरने का प्रयन दिया हूँ वि प्रत्येक गुण जिसका उत्लेख फतावाये जहादारी में हुझा है महमूद में विद्यमान था श्रत महमूद की सन्तान यर्थाद्‌ मुसलमान बादशाहो को उनका भ्रतुसरण वरना चाहिये । प्रत्येक उपदेश के पश्चात उसे स्पष्ट करने के लिए प्राचीन ईरान श्रौर इस्लामी इतिहासो की विभिन्न घटनाओं से उदाहरण दिये है। इस प्रकार फतावाये जहाँदारी के उपदेशो वो दो भागों में विमाजित किया जा सकता है १ सिद्धान्तो वा उल्लेख । २ इतिहासो से उदाटरण । फतावाये जहाँदारी में ज़ियाउद्दीन वरनी ने सुल्तान महमूद को श्रपने समक्ष रखते हुए अपनी महत्वाकाक्षा इस प्रवार व्यक्त की हूँ. महमूद यदि एक वार हिन्दुस्तान की भर श्राता तो समस्त हिन्दुस्तान के ब्राह्मणों को जी इस देश में एक छोर से दूसरे छोर तक कुफ तया शिक वी प्रयाशो वो दृढ बनाने का कारण हैं मरवा डालता श्ौर श्रतुमानत दो सौ-तीन सौ हजार हिन्दू नेता्रो की गर्दन मरवा देता । जब तक समस्त हिन्दुस्तान इस्लाम स्वीकार न कर लेता श्रौर कलमा न पढ लेता हिन्दुधो की हत्या करने वाली तलवार को म्यान मैं न रखता क्योकि महमूद शाफई धर्म का अनुयायी था शर इमाम काफई के निकट हिन्दुधों के विपय में यह श्रादेश है कि वे या तो इस्लाम स्वीकार करलें भ्रन्यया उनकी हत्या करादी जाय । हिन्दुधो से जिजया लेने की श्राज्ञा नही क्योकि न॑ तो उनकी कोई किताब है श्रौर न पैगम्वर 1 मुहम्मद तुगलुक के समय ही से देश के उच्च वर्ग की श्राधिक दशा डावा डोल हो शुकी थी । भ्रलाउदोन के समय की वह स्थिति जवकि अनाज सथा अन्य वस्तुओं का भाव रास्ता कर दिया गया था भव वर्तमान न थी । जियाउद्दीन बरनी श्रपने समकालीनों की भाँति स्वय॒ बडा श्रपव्ययी वन गया था । उसने श्रपने समय के सभी श्रपव्ययी श्रमीरो की तारीखे फी रोजशाही में बडी प्रशमा की है । उसने भझपने सुख के दिन याद करके भ्राँसू वहाये हैं किन्तु मुसलमानों के इस वर्ग को धन झव किस प्रकार प्राप्त हो सकता था ज़ियाउद्दीन वरनी स्वप देश की श्राय के साधन बढाने के उपाय न सोव सकता था । उसने सुल्तान मुहम्मद तुगजुक बी कृषि वी उम्ति की योजनाश्ो की भी हँसी सी उडाई है। फोरोज़ के समय की नई नहरों तया श्राथिक व्यवस्था से भी उसे वो लाभ न प्राप्त हो सका । उसे कोई ऐसा श्रन्य उपाय भी समक में नहीं झ्राया जिससे हिन्दू महाजनो साहूकारों तथा धनी लोगो के घन का किसी प्रवार अपहरण किया जाय। यह बेवल उसी समय सभव था जवकि बादशाह तथा समस्त उच्च पदाधिकारियों को यह सममा दिया जाता कि घर्मनिदर श्रयवा दीनदार बादशाह का कर्तव्य यह है लि दिन्दुध्रों थो अवलालित श्रौर तिरस्त किया जाय। उसे इस बात पर विश्वास या कि सभी हिन्दुपो वो मुसलमान बना लेना या उनको तलवार के घाट उतार देना सम्भव नहीं भस्तु उसने तारीखे फीरोज़शादी तथा फतावाये जहाँदारी द्वारा यह समभ्ाने का प्रयत्न बिया है कि बम से कम इतना तो होना श्रनिवायं है कि हिन्दुभो वो दरिद्र तथा मुहताज बना दिया जाय उनके पास इतना धरने शेप न रहे कि वे श्रादरपूर्वक जीवन व्यतीत बर सकें । इससे उसे श्राशा थी कि मुमलमानो को पुन धन सम्पत्ति प्राप्त हो जायेगी श्रौर उच्च वर्ग वी भाधिव समस्याश्ो वा बुछ दिनो के लिए समाधान हो जायगा। जहाँ तक साधारण वर्ग का सम्बन्ध है उसे जियाउद्दीन बरनी जोवित रहने वा झधिकारी समभता ही न था । बह चाहता था वि युद्ध वे छूट के माल में स सब कुछ रानकोप मे ही न पहुँच जाय श्रपितु मुसलमानों वे उच्च वर्ग को नी श्रथित से झधिय लाभ प्राप्त हो । की रण २. फतायायें जदीद री प० १९ अ ।




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