कीर्तिलता और अवहट्ट भाषा | Kirtilata Aur Avahatt Bhasha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kirtilata Aur Avahatt Bhasha by शिवप्रसाद सिंह - Shivprasad Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवप्रसाद सिंह - Shivprasad Singh

Add Infomation AboutShivprasad Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अवहूट्ट भाषा का स्वरूप अवहद्ट क्या हे मापा-शाख्रियों के बीच श्वदद्ट काफी विवाद का विपय रहा है । सिक्ष- भिन्न विद्वानों ने कभी इसे मैंथिल दपय्रश कभी संक्रान्तिकालीन भाषा श्रौर कभी पिंगल झ्ादि नाम दिये हैं। यह विचारणीय है कि श्रवददद्ध शब्द क्या है श्रौर इसका प्रयोग अरब तक के उपलब्ध साहित्य में किस-किंस रूप में हुआ हैं । १. अवहट्ट का सबसे पहला प्रयोग ज्योतिरीश्वर ठाकुर के वर्खुरल्लाकर ( १३२४. ई० ) में मिलता है । राजसभाओओं में भाट जिन छः भाषाओं का वर्णन करता है उसमें एक झवहट्ट भी है : पुनु कइसन भाट, संस्कृत, प्राकत, '्वहट, पेशाची, शौरसेनी सागघी, छुट्ट भापाक तत्वक्ष, शकतारी श्राभिरी 'चांढाली, सावली .. द्वाबिली, .. झौतकली, ... विजातिया, .. सातहु, उपभाषाक.... छुशलद्द॒ ।... चर्णरलाकर श£ ख। २ दूसरा प्रयोग विद्यापति की कीर्तिलता में हुमा है । श्रपनी भाषा के चारे में विचार व्यक्त करते छुए. कवि कहता है : सक्य चाणी बुदझन सावइ पाउंग्र रस को सम्म न पावइ देसिल वद्धना सब जन मिटा ते तेसन जम्पणो श्वरद्धा हर कीर्तिलता १1१६-२९ ३ तीसरा प्रयोग प्राकृत-पैँगलम के टोकाकार वंशीघर ने किया है उनकी राय से प्रात पैंगलम्‌ की भापा व ही है | पद्म भास सरंदों हर णाश्ो सो पिंगलो जश्नड (१ साहा) दा. ४. प्रयमो सापातरंड- प्रसम शा: साया धवदद्ध मापा यया भापया धयं यंपो राचतः सा पद सापा तस्या इत्यर्थ त॒ प्य पारंप्राप्सोति तथा दिंगल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now