कोविद - कीर्तन | Kovid - Kirtan

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Kovid - Kirtan by महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० .......काविद-कीर्तन शब्दशास््र में आपटे की विलक्षण गति थी । . पाणिनि के “'शकघुषज्ञाग्लाघटरभलमक्रमस दाहास्त्यथ पु तुमुन”” इस सूत्र पर, सिद्धान्त-कौमुद्दी में, भट्टोजी दीक्षित ने कहा है-- अर्थत्रहण मस्तिनेव संबध्यते । अनन्तरत्वात्‌ । दीक्षित के इस कथन का, झापटे ने, झपने “संस्कत-गाइड”” के 'तुमू” प्रयय ( 1िएधए6 ए0006 )) प्रकरण में; सप्रमाण ्रौर सयाक्तिक खण्डन किया है। यह पुस्तक इतनी उपयोगी ्रौर सर्वप्रिय है कि थाड़े ही समय में इसकी कई ध्रायुत्तियाँ निकल चुकी हैं । _ दारिद्रग्रस्त होकर भी झभिरुचि होने से मनुष्य उच्च से उच्च विद्या सम्पादन कर सकता है श्र भ्रपनी विद्वत्ता के बल पर वह अल किक प्रतिष्ठा-भाजन भी हो सकता है। श्रापटे के चरित्र से यही शिक्षा मिलती है । [ जनवरी १६०१




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