काव्य में अप्रस्तुतयोजना | Kavya Me Aprastutayojna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काप्य में श्प्रस्तुतयोजना
बहुत व्यापफ क्षेत्र है। शेप श्रग्रस्तुतयोजना एँ प्राय; शर्म से विशेष सम्नरभ
रखती हैं । दर
ऑप्रस्तुतयोजना चादर से लायी जानेवाली सारी घलनुद्रों को अदण फरती
दै न्वादे प्रप्र्ुत का फैसा ही रूप क्यों न दो | श्रग्रस्तुत विशेष्य हो,
विशेषण दो, क्रिया दो, मुद्दाविरा दो, चादे शौर कुछ दो, इसके भीतर सब
समा जाते हैं | विशेष्य को दी लीजिये...
१ छाया की 'ाखसिंची नी, मेघों का मत्तवालापन |...
२ पीले मुख पर संध्या के वे किरणों की फुलमड़ियाँ । मदादेवी
इनमें 'ाँलमिचौनी' श्रौर 'फुलभाड़ियाँ रूपक के रूप में श्रायी हैं पर,
थे हैं विशेष्य | 'श्राजमिची नी पछायार का ,चदद दृश्य उपस्थित करती, है
जिस में कमी वद्द इट जाती हे दौर कभी श्रा लाती है । इस खेल में यद्दी होता
हैकि कभी ग्रॉ्लें मंद लाती हैं और कमी खुल जाती हैं | संध्याकाल में
किस्णें भी छूटी पढ़ती हैं नेसे कुलभड़ियों से चमकती तितलियाँ छूट़ती हैं ।
इनमें भी उपमान की वचातें के तो कोई श्रनुचित नहीं। दोनों में टी
उपमान चर्तमान हैं 1 सामिप्राय विशेष्यकथन में “परिकरांकुर?
श्रलंकार दोता है । दी
सिकले भाग्य हमारे सूसे, वत्स दे गया तू हा
किया मुझे कैकेयी ने, दा कलेंक कस लगा
यहाँ केकेयी सामिप्राय विशेष्य है | इसे गौतम के न
पर महा शुः
तपस्या-के लिये लाने पर उनकी साता मददाप्रजावती ने कहा हा
राम को वनवास दिया था ! मैंने भी वैसे सिम का यी ने
ट गया
करी की त जी मी उपमान शब्द का अयोग किया ला सकता है
कर व्य पण विशेयण
अमस्तुतयोलना की ही वात्त कही ज्ञा स्ण ही रदेगा। इसमें न तो.
सकती है और न उपमान की ही
विद्रमें '्मौ मरकत की छाया सोने, चॉ: दी) पर
थ चाँदी का सर्यातप
है हिम परिमल की रेशमी मायु शतरत्नछाय खगचिथिव दर पं
में नये रेशमी” वायु कइते हैं तब वायु की कोमलता चिकणुत्त का
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नामक एक
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