योग चिकित्सा ( अज्ञात पुस्तक ) | Yog Chikitsa ( Unknown Book )
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.35 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आवश्यक सूचनाएँ छः
इसके चिषय में वे चल इतना ही लिखा है कि रोग की शान्ति के लिये
इसे खाये [ मरिचाभा वर्टी खादेदग्निमान्यश्रशान्तये ] । ः
इस प्रकार से श्रत्येक रोग की जो घछोषधिया लिखी हैं, उनमें से कौन ौषध
रोग की श्चस्था में प्रयोग की जाती है; उसका फलाफल क्या है, यदद सब
वेदों के उपदेश से तथा प्रत्यक्ष देखने से ही प्राप्त होता है, शाख्र पढने से नहीं ।
साथ ही योग के घटकों पर पूरा ध्यान देना जरूरी है। इस विष्य में
भी उपरोक्त पुस्तक में कुछ सूचनाएं दी हैं यथा--
घ्यायुरवेंद में श्यनेक 'ओोषधियों के घटक-उपकरणों में चहुत साइश्य हैं ( यथा
लीलांचिलास श्र पंचासत पर्पटी में )। श्ोषधिका नाम या भिन्न हो
जाने से कुछ विलकणता नहीं श्या जाती । इसलिये अत्येक घटक के विषय में
वारीकी से विचार करना चाह्यि । और लौलाविलास के घटक एक
होने पर भी कत्पना ( बनावट ) से श्रन्तर श्रा जाता है । इसके लिये 'घर्टक के
साथ निर्माण विधि का भी चिचार ध्यावश्यक है ।
साथ ही एक-दो घटक का श्रन्तर होने पर श्रथवा एक के समान गण चाला
दूसरा द्र य योग में होने पर केवल नाम सेद होने से उसके गुर्णा में विशेष ान्तर
नहीं था जाता । उदाहरण के लिये चाजीकरणोक्त मन्मथधाश्ररस के उपकरण
यदमाधिकारोक्त के समान हैं, परन्तु मन्मथाश्ररस को कोई भी
झय रोग में नहीं घरतता और रस को वाजीकरण के लिये किसी को
भी काम में लाते नहीं देखा ।
यदमाधिकारोक्त यद्मारि' लौह के उपकरण स्वर्णमाक्षिक, शिलाजतु, लौह,
चिडग, हरीतकी हैं और पृूर्णचन्द्र रस के उपकरण रससिन्दूर, श्र, स्वर्ण
माधिक; शिलाजतु, लोह और विडग हैं । इसलिये यदि यदच्मारि लौह के साथ
रससिन्दूर छौर श्रश्रक को मिला दिया जाये तो विना कष्ट के यही योग घातु
दोर्वल्य में भी वरता जा सके गा। पूर्ण चन्द्ररस् यच्मा रोग में वरता जा सकता है,
क्योंकि ाश्रकभरम फेफर्डों के लिये उत्तम है, रससिन्दूर सच रोगहर है । इसी
प्रकार जीर्ण ज्वर में कहा सर्वतोभद्र रस श्ौर कासाधिकारोक्त सार्वमोमरस;
शूलाधिकारोक्ता शुलवख्धिणी ग्रहणीरोगाधिकारोक्त चपवज्ञम एवं कासऊुठार
घर ज्वरोक्त खत्युजय के उपकरण परस्पर समान हैं । वातरक्त में कहा
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