रूक्मिणी हरण | Rukimani Haran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
389
श्रेणी :
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ओंकारनाथ शर्मा -Onkarnath Sharma
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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजनेता चुन लेना चाहिए,” प्रद्योत ने कहा ।
कुछ यादव सरदारों को यह भी ब्रा हुई कि प्रद्योत स्वय राजा बनने
की इन्छा तो नहीं खता ।
'प्यप्मी इतनी चीघ्रता थी क्या है ?''
देते हुए कहा ।
कुछ समय तक विचारमग्न रहने के वाद प्रयोत के सुभक्ाव पर वसुदेव
ने श्रपनी सहमनि प्रकट की । ' कस के स्थान पर किसी को बेंठाना तो है
ही । फ़िर इस कार्य में विलम्ब क्यों किया जाए * इससे हमारे बतुम्नो को
भी उत्तर मिल जाएगा ।”'
“आय गर्गाचार्य क्या सोच रहे है ? ” प्रद्योत ने पुछा । “मैं भी तुमसे
सहमत हूँ, गर्गाघिय ने कहा ।
“मथुरा के विनादय के लिए अ्रवव्य पइयन्त्र रचा जा रहा है । हमें
चगुओ की चाटा को विफल करने के लिए लीघ्र ही ठाक्ति का सचय दरता
होगा ।
“किन्तु दूमारा राजनेता बौन बनेगा ?”' एक वर्प्ठि यादव सरदार
न पृछा । “जिसमे सभी का सम्पूर्ण विव्वास हो,ऐसा होना चाहिए उसे ।
“दुरश्रेप्ठ बसुदव ही हमारे राजनेता होने के श्रघिकारी हू । एक
याब्व ने सुभाव दिया ।
“मरा समस्त जीवन दोक-सचिता बनकर ही बहा है । मै स्व
चिन्ता की चिता में जनता रहा हँ। तुम सब जिसे छुनोंगे, मै उसकी
स्व सहायता करूंगा । किन्तु मैं यह भार वहन नहीं कर सकता,” वसु-
देव ने कहा ।
'पैँ तो समभता हूँ, टस दिला में हमें चीघ्रता से किसी निर्णय पर
पहुंच जाना चाहिए । हमें उन सरदारों को वापस बुला लेना चाहिए, जो
देण-निष्कासित कर दिए गये है, ग्रधवा जो कही श्र जाकर बस गठे
हू। हमें उनके साथ संधि कर लेनी चाहिए ।”
बहुत से लोग प्रद्योत को सशकित दुप्टि से देखने लगे । वह भले ही
कितना ही डाक्तिणाली एवं कुदाल क्यो न हो, किन्तु राजनेत! के रूप में
लोग उसे नहीं चाहत थे ।
कृष्ण ग्राकर श्रपने पिता के पा्वं से बैठ गण । करवद्ध सभी ने
उसका स्वागत किया । क्योंकि वह सोलह वर्ष का किशोर ही नट्टी, इन
कुछ यादव सरदारों ने वल
राजमुकूट का परित्याग / १६
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