युग छाया | Yug Chhaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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No Information available about शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१द्
कक्त में हो । ( श्रमियुक्त से ) अभियुक्त, तुम विक्रमादित्य की
परीक्षा लेना चाहते हो कि बह अपनों व्यवस्था में सतक है या
नहीं ? छद्मवेशी अभियुक्त, तुम नारी-वेश में पुरुपत्व का अपसान
और नारीत्व की अवहेलना करने वाले कौन हो ?
असियुक्त--( हिंचकते हुए ) सम्राट
बिक्रमादिस्य--( वीव्रत। से ) तुम्हारा नाम कया है ?
_.. अशियुक्त--( सकते हुए शब्दों मे ) सम्राट, से मैं पुरुप
हूँ |
'' विक्रमादित्य-मै जानता हूँ कि तुम पुरुप हो, पुरुपत्व को
लडग्जित करने वाले पुरुप । तुम्हारा नाम क्या है ? चिक्रमादित्य
के सामने तुस असत्य भापण नहीं कर सकोगे । मेरे अधिकार
मे अग्नि है, ( तलवार पर हाथ रखकर ) “झपराजित' की तीदण धार
है और बधिक का तीक्षण कूपाण | सत्य और धर्म के सोपान पर
सुसज्जित पवित्र न्याय के सामने अपने नाम के अक्षर दुष्पप्रपे
उभियुक्त--( बिहल होकर ). सम्राट... सम्राट. मुझे
क्षमाकरें मे खी हूँ।
विक्रसादिस्य--तुम खी हो ? यह तो सभी देखने घाले जान
सकते है, किन्तु मैं तुम्हारे पुरुपस्वर की परिभापा जानना चाहता
हूँ |
अभियुक्त-सम्राट् ; मे खी हूँ । मेरा नाम पुष्पिका हे ।
विभावरी--( तीव्रता ते ) यह मूठ पोलता हे; इसका यह नाम
नही है ।
विक्रमादिस्य--( मुस्कराकर ) लाम तो बहुत सुन्दर हे; किन्तु
तुम्हारा वास्तबिक नाम क्या है ? तुम बिक्रमादिन्य के न्याय के
सामने दो, असत्य भापण नहीं करोगे |
अभियुक्त--सम्राट, में क्या कहूँ मेरी समम में नहीं झाता ..
हों, में पुरुष हूँ ।
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