युग छाया | Yug Chhaya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Yug Chhaya by शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

Add Infomation AboutShivdan Singh Chauhan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१द्‌ कक्त में हो । ( श्रमियुक्त से ) अभियुक्त, तुम विक्रमादित्य की परीक्षा लेना चाहते हो कि बह अपनों व्यवस्था में सतक है या नहीं ? छद्मवेशी अभियुक्त, तुम नारी-वेश में पुरुपत्व का अपसान और नारीत्व की अवहेलना करने वाले कौन हो ? असियुक्त--( हिंचकते हुए ) सम्राट बिक्रमादिस्य--( वीव्रत। से ) तुम्हारा नाम कया है ? _.. अशियुक्त--( सकते हुए शब्दों मे ) सम्राट, से मैं पुरुप हूँ | '' विक्रमादित्य-मै जानता हूँ कि तुम पुरुप हो, पुरुपत्व को लडग्जित करने वाले पुरुप । तुम्हारा नाम क्या है ? चिक्रमादित्य के सामने तुस असत्य भापण नहीं कर सकोगे । मेरे अधिकार मे अग्नि है, ( तलवार पर हाथ रखकर ) “झपराजित' की तीदण धार है और बधिक का तीक्षण कूपाण | सत्य और धर्म के सोपान पर सुसज्जित पवित्र न्याय के सामने अपने नाम के अक्षर दुष्पप्रपे उभियुक्त--( बिहल होकर ). सम्राट... सम्राट. मुझे क्षमाकरें मे खी हूँ। विक्रसादिस्य--तुम खी हो ? यह तो सभी देखने घाले जान सकते है, किन्तु मैं तुम्हारे पुरुपस्वर की परिभापा जानना चाहता हूँ | अभियुक्त-सम्राट्‌ ; मे खी हूँ । मेरा नाम पुष्पिका हे । विभावरी--( तीव्रता ते ) यह मूठ पोलता हे; इसका यह नाम नही है । विक्रमादिस्य--( मुस्कराकर ) लाम तो बहुत सुन्दर हे; किन्तु तुम्हारा वास्तबिक नाम क्या है ? तुम बिक्रमादिन्य के न्याय के सामने दो, असत्य भापण नहीं करोगे | अभियुक्त--सम्राट, में क्या कहूँ मेरी समम में नहीं झाता .. हों, में पुरुष हूँ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now