श्रावकधाम प्रकाश | Shravakdharm Prakash

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shravakdharm Prakash by ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

Add Infomation About. Bra. Harilal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्रावकधघर्स-प्रकादा |] ( महिमाका गुणगान खुनायें थ्गेर उसको खुनते इए मुमुश्ुको भक्तिका उ्ठास न दोवे पेसा केसे बने ? ऐसे स्वेक्षकी पहिचान यह श्रावकका पहला लश्ण है; थोर यदद धममका मूल है। जो सवेज्ञको नहीं पढ़िचानता, जिसे उसके वचनोंमें श्रम है सौर जो विपरीत मार्गको मानता ै उसे तो श्रावयकपना नहीं होता शोर झुभभावका भी ठिकाना नहीं है, मिध्यात्वकी तीन्तादे कारण उसे मदापापी अथवा भपात्र कद है। इसलिये सुमधुकों सवे घथम स्वधदेवकी पदिचान करनी चाहिए । अदा नाथ ! आपने पक समयसें तीनकाठ तीनलोककों साश्तात्‌ जाना श्र दिवध्यवाणीमें आात्माके सर्वेज्षस्थसावकों प्रगट किया; आपकी चह वाणी हससे सुनी लो अब आपकी सर्वज्ञतामें अथवा मेरे कानस्थभावमें संदेह नहीं रहा। आत्मामें दाक्ति भरी है उसमेंसे सचेक्षवा प्रगठ होती है--पसी आत्मदक्तिकी जिसे प्रतीति नहीं और वादइर्के साथनसे धर्म करना चाहता है बह तो वड़ा अविवेकी हे, इथ्रिहीन है। ज्ञानस्वभावकी सौर सवन्षकी श्रद्धा दिगा. ” शाख्म पेसा लिखा थीर उसका थथ ऐसा होता है ”-- पेसा ज्ञानीके साथ चाद-बियाद करे बह तो, आकादामें उड़ते पश्चियोंकों मिननेके लिगे आँखों चालेके साथ आधा छोड़ फरे-इस प्रकार है। ज्ञानस्वसावकी इप्ट्रि विना, सबंज्ञ द्वारा कहे हुए शास्प्रके जर्थकों प्रगट करना अच्यक्य है। अतः पहले ही इलोकरमें सबंक्षकी थऔर उसकी घाणीकी पहिच्यान कर्लेको कहा गया है। सवेज्षकी थद्धा सोझके मज्डपका माणिक- स्तंभ है; उस सवंक्षके अर्थात्‌ मोसतत्वके गाने गाकर उसकी श्रद्धारूप सांगलिव्ठ किया । अब ऐसे स्वक्षकी पदचिचानबाले सम्यण्दष््रि जीवॉकी विरखता चतलाकर उसकी महिमा करते झुए दूसरे इलोकमें कदते हैं कि सम्यग्दष्रि अकेठा दो तो भी इस लोकमें चोभनीय और प्रयनीय होता है |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now