वीतराग विज्ञानं पार्ट - ३ | Vitrag Vigyan Part - 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vitrag Vigyan Part - 3 by ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

Add Infomation About. Bra. Harilal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वीचरीयण्लिन भागने 3 [ १९ ६4 प्रिय जर्थात . स्थिरता,-विससे ?. लिजरवल्ण्मे । निजस्परूप नया है स्‍सझे ्ानके घिना रिर्दा नहीं होती ' समनारप सार्णरूए टास्णपुसरागन नियृत्त छोर जपन दर जी हि डक ब पत्तन्यरणर प्य प्रयत्ति होना सो सम्यद चारिन्न हे । सात्मघार पृदच ही ण्सा पारिन्न होता है, अघानीकों गदीं होनानयह श्र चर बनने स्ये उसको ' सम्यक ण्ढा है । थ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now