श्रावकधर्मप्रकाश | Sravak Dharmprakash

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sravak Dharmprakash by ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्र. हरिलाल जैन - Bra. Harilal Jain

Add Infomation About. Bra. Harilal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भ्रावकघरस-प्रकाश ] [ ७ क़टकर स्वभावसन्मुख रुचि होती है तभी स्वक्षके द्वारा कहे हुए धर्मकी पहिचान होती है और तभी श्रावकपना प्रगट दोता है। जेनकुल्में जन्म लेनेसे ही कोई भआ्रावक नहीं हो जाता परन्तु अन्तरमसें जैन परमेश्वर सर्वेश्देवकी पहिचान करे ओर उनके दारा के हप वस्तुस्वरूपको पहिचाने तभी शआ्रावकपना होता है। अरे, भ्रावकपना किसे कहते हैं. इसकी भी बहुतसे जीवोॉंको खबर नहीं। इसलिये यहाँ देशवत-उद्योतनमें पद्मनन्दीस्वामीने श्रावकके धमेका उद्योत किया है, उसका स्वरूप प्रकाशित किया है। मांगलिकमें हमेशा बोलते हैं. कि 'केवलिपण्णत्तो धम्मो शरणं पव्वज्जामि -- अर्थात्‌ में केबली भगवानके द्वारा कहे हुए धर्मकी शरण श्रहण करता हूँ। परन्तु सर्वश--केवली केसे हैं ओर उनके द्वारा कहे हुए धर्मका स्वरूप कैसा है उसकी पहिचान विना किसकी शरण लेगा ?--पहिचान करे तो सर्चश्के धमकी शरण लेना कहलाता &, ओर उसे स्वाश्रयसे सम्यक्छ्दशनादि घम प्रगट होते हैं। मात्र बोलनेसे धमकी शरण नहीं भिरुती, परन्तु केवली भगवानने जैसा धर कहा है उसकी पदिचान करे अपनेमे वैखा भाव प्रगट करे तो केवलीके धकी शरण ली कहलाये | सवसे पहले सर्वेशदेवकी और उनके द्वारा कहे हुए धर्मकी पहिचान करनेको कहा गया है। शास्त्रकारने मात्र वाह्य अतिशय द्वारा या समवसरणके वैभव द्वारा सगवानकी पहिचान नहीं कराई परन्तु सर्वेश्षतारूप चिद द्वारा भगवानकी पहिचान कराई, तथा उनके द्वारा कहा हुआ धमे दी सत्य है' ऐसा कहा है। जगतमें छह प्रकारके स्वतेत्र द्रव्य, नो तत्व और भ्रत्येक आत्माका पूर्ण स्वभाव जानकर स्वाभ्रयसे धमे चतलानेवारी सवक्षकी वाणी, ओर सगादिक पराधितभावसे धम मनवाने चारी अक्ञानीकी वाणी, --इनके चीच विवेक करना चाद्ये । स्वाध्रित शुद्धोपयोगरूप शुक्छष्यानके साधनसे भगवान सवेक्ञ हप ह । के 9 হক্ব ध সহঃ লহ शुकलध्यान कैसा है? क्‍या उस ध्यानका रंग सफेद है? उत्तरः--अरे মাই, হানা वह तो चेतन्यके आनन्‍्दके अज्ञुभवमें लीनताकी घारा है, वह तो केवलजान प्राप्तिकी श्रेणी है। उसका रंग नहीं होता। सफेद रंग वह तो रूपी पुदूगलकी पर्याय है। यहाँ शुक्लध्यानमें 'शुक्‍्क ! का अर्थ सफेद रंग नहीं परन्तु शुक्लका अथ है रागकी मलिनता रहित, उज्ज्वल, पवित्र । शुकलध्यान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now