कसाया- पहुदम भाग १ | Kasaya-pahudam Bhag 1

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Kasaya-pahudam Bhag 1 by मंत्री - Mantri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) केवल मूलमें प्रयुक्त विभक्तिके झातुसार दिन्दीमे उसी विभक्तिके विठानेकी नहीं। मूलालुगामिस्वका छामिपाय भी यददी है कि मूलसे अधिक ते कद्दा न जाय पर जा कुछ कहा जाय बह विभक्तियाका बानुदाद न होकर विपयका अनुवाद होना चाहिये 1 इसके लिये जददोँ झापश्यक समसा वहाँ विशेषाधें भी दे दिये हैं। इनके लिसने में भी हमने प्राचीन अन्थोंका 'छोर उनसे फलित होने घाले प्रमेयोका दी अनुसरण किया है । टिप्पण-सतंमानमे सम्पादित होनेवाले मन्थोंमें प्राय अन्यान्तरासि टिप्पण देनेको पद्धति चल पड़ी है। यह पद्धति कुछ नह नददीं है । प्राचीन दस्तलिंग्यित प्रन्योमे भी हमें यह पद्धति झापनाई गई जान पड़ती है। इससे नेक लाभ हैं। इससे 'झष्ययनकों व्यापक 'औीर विशद्‌ चनानेमें बढ़ी गदद मिलती है। प्रकृत विपय छन्यत्र कहाँ किस रूपमें पाया जाता है, यहाँ से वहां वर्सन क्रममें कया सारूप्य, विभितता था विशदता है, यह सब हम टिप्पणासे भमली भॉति जान सकते हैं। इससे इस पिपयके इतिहासफ्रम 'और विकाश पर भी प्रकाश पड़ता है । तथा इससे प्रकृत प्रन्थके हद्य सोलनेमें भी बडी मदद मिलती है। इन्दों सब चातोका विचार करके हम लोगोंने अस्तुत सस्करणुमे भी टिप्पणोंको स्थान दिया है । प्रस्तुत सरररशभे तीम प्रकारके टिप्पणु हैं । एक पाठान्तरोंका सप्रह करनेवाले टिप्पण हैं । दूसरे जिनमें गतरण निददेश फ्या गया है ऐसे टिप्पण हैं छोर तीसरे चुनना छोर निपयकी रुपएताफों प्रकट करनेतराले दिप्पण हैं । टिप्पसोंमे उद्धृत पाठ जिस अ्रन्थका है उसका निर्देश पहले कर दिया है। 'झनन्तर जिन अन्थींका निर्देश किया है उनमें उसी भ्रकारका पाठ है ऐसा नहीं समकना चादिये। किन्तु उनका नाम सुर्यत विपयकी दृ्टिंसे दिया है। टाईप-इस सरकरणसे कसायपाटुड, उसके चूर्णिसूच और इन पर जयधबला टीका इस प्रकार तीन अन्थ चलते हें । तथा टीकामे बीच धीचमें उद्धृत वाक्य भी था जाते हैं, छत इसमे इन सबके लिये विभिन्न टाईपॉंका उपयोग किया है। कसायपाहुडफी गाधाए काला बद्धिकें, चूर्णिसून्र प्रेट न० १ में, जयधवला प्रेट न० २ में 'परोर इद्धुतवाक्य घ्रेट च० ४ में दिये हें । मूडविद्रीकी प्रतिमे गायासूत, चूर्णिसूच '्यौर उदयारणा के पहले # इस प्रकार फूलका चिह्न है; फिर भी हमसे मुद्रित बतिमें केवल व्यूर्िसूज मोर उसके अजुवादके प्रारम्भमें ही # इस प्रकार फूलके चिहका उपयोग किया है । कसायपाइहुडमें कुल गाथाए २३३ 'योर मिपय सम्बन्धी १८० गाधाए हैं। इसने गाथाकें अन्तमें २३३ के 'छनुसार चालू नम्बर रखा है तथा जो गाथा १८० चालीं हें उनका क्रमाक नम्यर गाथाके श्रारम्भम दे दिया है। दिन्दी 'झनुवादूमें भी कसाय पाहुडकी गाथाछों 'और चूर्णिसूीका अनुयाद म्रेट न० र में छोर जयधयला टीका तथा उद्धत चाक्योंका अनुवाद प्रेठ न० ४ में दे दिया है। तथा उद्धृत वाक्योकों और उसके 'छनुवादकों दोर्मा कोरसे इनयरटेड कर दिया है। भापा-नपघवला टीकाके मूल लेसक छा० वीरसेन हें 'और इनकी भाषाके विपयमें धवला प्रथम सणदमे पर्याप्त लिसा जा चुका है, झत यहाँ इस विपयमें प्रकाश नहीं डाला गया है। तथा मूल क्सायपाहुड और चूशिसूनोंकी भापाके विपयमें छभी लिखना उचित नहीं समझा, क्योंकि इस सण्डमें इन दानों प्रन्योंगा चुत दी कम अश प्रकाशित हुधा है । कार्य विभागकी स्थूल रूपरेखा थी जयघवलाके सम्पादनमे मूलका सशोधन, दिन्दी अनुवाद, टिप्पण, परिशिष्ट और भूमिया शुरय हैं । इम लोगोंने इन कामोंका स्थूलरूपसे रिभाग कर लिया था। फिर भी इन सबको




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