जीवन भाग -३ | Jeevan [ Part - Iii ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रपम भेंट १७
नज़र से थवश्य देखा । उन आँयो मे कया था, इसे तो कानजी न समझ
सवा, पर उसने यह अवश्य अनुभव किया ५ि मिलती हुई नजर ने उसके
हुदय से वुछ उठा लिया है और तले मे वुछ रख दिया है । दोनो ने
एवं दूसरे को फिर देखा और इसके बाद चारा ही याँखें नीचे झुक गई ।
अब तो जैसे होठ भी सिल गए थे । हृदय थी गति बदल चुकी थी । पूरी
तेजी से धूमता हुआ चथ धीमा पढ़ा । जीवी के दाद कानजी नीचे
उतरा, पर अपने नीचे उतरने था भान तो उसे तय हुआ जव ऊपर बैठे
हुए हीरा ने या कहा बि वयो कानजी ” अभी से ?” लेविन अब वया
हो सकता था ? जगह सो भर चुका थी । जगह होती तो भी वदाचिदु
वह बब न बैठता । स्वग में हा जाने का उसे जितना हप था, उतना ही
उस स्वग स अलग होने का शोव भी था ।
बुद्ध स यडे कानजी वे काना मे फिर वही मधुर गाधाज पढी--
नो अपना पैसा ।” कहती हुई जीवी हाथ बढ़ाये खडी थी । नातडों ने
झिडकती हुई नजरा से जीवी को देखा । हँसवर वोजा--*यसे हो
यही समयना जि एक थार मेरी भोर से हो बैठी थी 1”
जीवी ने कुछ हुज्बत न करके हाथ पीछे खरोंच रिदा 1 सेकिट घास
खड़ी मणी से वोले बिना न रहा गया--“थों दिन जाललरनाण के
किसी वा पैसा रखा जाता होगा ?” यो. ढहठर इुस्टयती हु तर
कानजी की ओर देखने लगी ।
“जान पहचान न होती तो इनक पैसे हल के सलिए ेय हाथ ही
बयो बढ़ता ? * वहुवर हंसते हुए कानडी न काटी कै; रे आँख मारे
भौर उसके सुहाग रहित हाथा की आर रहे लए
“अरी रहने दे । नहीं ठा, दा शर अडुडर साएा न जीदो दो
बागे बिया । चलते चनत दाजी--िटट की दियी एके छा सीर
कया * ्ि
“चल, चुप रह 1” बदली दूई जटी नछे हुए जौर चिप
को देखा । दे
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