हिन्दी गद्य के निर्माता पण्डित बालकृष्ण भट्ट | Hindi Gadya Ke Nirmata Pandit Balakrishn Bhatt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
486
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के ४ की
इस निबन्ध की भूमिका ही है । इसकी श्रधिकांश सामग्री पराजित है । यत्र
तत्र मौलिक सामग्री का भी इसमें उपयोग किया गया है ।
दूसरा श्रध्याय 'जीवनी' का है जिसकी चर्चा ऊपर का! जा चुकी है ।
तीसरे श्रध्याय में भट्ट जी के पत्रकार रूप का श्रध्ययन किया गया है अभी
तक किसी ने प्रामाणिक ढंग पर उनके इस रूप का विवेचन नहीं किया ।
लेखक ने ३३ वर्ष की “हिन्दी प्रदीप” की संचिकाशं के श्राध।र पर सुल सामग्री
का उपयोग करते हुए उनके पत्रकार रूप श्रौर पत्रकार कला पर प्रकाश डाला
है जो लेखक का विद्वास है श्रपने ढंग क। मौलिक कार्य है ।
चौथे श्रध्याय में भट्ट जी के निबन्थकार रूप का विवेचन है । श्रब तक भट्ट
जी के निबत्धकार रूप पर लेखनी चलाने वाले लेखकों का श्रध्ययन क्षेत्र उनके
केवल प्र काशित निबन्धों तक ही सीमित रहा है । इस प्रबर्ध में पहली बार भट्ट
जी की सम्पु्ण मौलिक निबन्ध सामग्री का उपयोग किया गया है । भ्रन्य लेखकों
द्वारा किए गए भट्ट जी के निबस्वों के वर्गीकरण का लेखक समधंक नहीं हैं ।
क्योंकि वह उनके कतिपय प्रकाशित निबन्धों पर ही अ्राधारित है तथा एकांगी
प्रौर अपूर्गों है । इसलिए इस प्रबन्ध में वर्गीकरण का आधार श्र रूप सबंधा
उसका श्रपना है ।
पाँचवें श्रध्याय में भट्ट जी के श्रालोचक रूप पर विचार किया गया है ।
इसमें पहली बार ग्रालोचक के रूप में भट्ट जी के विचारों की एफान्विति तथा
एकसूत्रता स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। श्रौर श्रालोचक के रूप में
हिन्दी भ्रालोचना साहित्य में उनका स्थान निर्धारित किया गया है ।
छठव श्रध्याय में भट्ट जी के कथाकार रूप का विवेचत किया गया है ।
अ्रभी तक हिन्दी का कोई भी लेखक भट्ट जी के कथा साहित्य के त्रिपय में
पूरां प्रभिज्ञ नहीं है । श्रनेक तो उनके प्रकाशित उपन्यास श्रौर नाटकों को ही
उनके द्वारा प्रणीत मानते हैं श्रौर शेष के विषय में अ्रंघकार में है जबकि कुछ
भट्रजी की कृतियों में ऐसी रचनाश्रों का उल्लेख भी कर जाते हैं जो उन्होंने कभी
लिखी ही नहीं । उदाहरणा्थ भट्ट जी के पौत्र धन॑ंजय भट्ट 'सरल' स्वसम्पादित
कतिपय पुस्तकों में भट्ट जी प्रणीत कृतियों के रूप में कुछ ऐसी रचनाग्रों का
उल्लेख कर गए हैं जो भट्ट जी की हैं ही नहीं । उन्द्ीं को श्राघार भ्रौर प्रमाण
मान कर भ्रम का यह बवृत्त विस्तृत से विस्तृततर होता गया है । इन पंक्तिपयों
के लेखक ने प्रथम बार भट्ट जी की कृतियों की निश्चित संख्या दी है श्रौर
द्विघाहीन तथा निशांत भाषा में उन कतियों वा. सप्रमाण खंडन किया है जो
भट्ट जी द्वारा वास्तव में लिखी ही नहीं गई । वास्तव में श्रभी तक भट्ट जी के
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