सूफीमत साधना और साहित्य | Suphimat Sadhana Aur Sahitya
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ राम पूजन तिवारी बिहार प्रदेश के भोजपुर जिला अंतर्गत बड़हरा प्रखंड के गंगा तटवर्ती इलाके के परशुरामपुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने कठिन संघर्ष के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। डॉ राम पूजन तिवारी एक निम्न वर्ग के परिवार से आते थे। गांव में रहने के बावजूद डॉक्टर तिवारी ने अपने बुद्धि और विवेक के द्वारा कई किताबों की रचना की। आज के युवक उन्हें भूलते जा रहे हैं। इलाके के लोग आज भी उन्हें बड़े गर्व के साथ याद करते हैं। सूफी साहित्य के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा उन्हें कई स्वर्ण पदक, सिल्वर पदक और ताम्र पदक से नवाजा है।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो शब्द
प्रस्तुत पुस्तककै वक्तव्य-विपयके वारेमें मुझे विरोध कुछ नहीं कहना
है । उसके सम्बन्धमें इतना ही कह सकता हूँ. कि सूफीमतकों समझनेका
अयास किया है और उसे ही पाठकोंके सम्मुख रख रहा हूँ । सहानु-
भूति और श्रद्धा लेकर मेने सूफियोंके दृष्रिकोणको समझनेकी चेषटा की है
मेरी दृष्टिम॑ं बिना इसके किसी भी विपयके यति पूर्ण न्याय नहीं हो
सकता । फिर भी भिरपेक्ष रहकर ही वक्तव्य विषयकों प्रस्तुत करनेकी
चेष्टा मैंने की है । एक दूसरी बातकी ओर भी ध्यान आकर करना आव-
ब्यक जान पड़ता है । सूफीमत तथा साधना अथवा अन्य किसी भी
मध्ययुगीन साधना और मतकों समझनेके लिए तत्कालीन वातावरण और
मान्यताओंको आँखोंसे ओझल होने देना अनुचित होगा ।
जायसी-साहित्यकों समझनेके लिए. सन् 5९५४९ ई० के प्रारम्भम मेने
सूफीमतका अध्ययन झुरू किया । जायसी-साहित्यका अध्ययन तो जहाँका
तहाँ रद गया सूफीमतकी जानकारी ही मेरे लिए प्रधान हो उठी । उस
समय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी-भवनके अध्यक्ष थे । उन्होंने
इसी ओर अग्रसर होनेकी सुझे प्रेरणा दी । उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहनसे
मैं इसके अध्ययनमे लगा रहा और गत पॉच-छः वर्पोतक इस पुस्तककी
सामग्री जुराता रहा । पुस्तक जैसी भी बन पड़ी है, आपके सामने है ।
इससे अधिक मुझे नद्दी कहना है |
अन्तमें अपने उन मित्रों और झुभेच्छुओकों घन्यवाद दिये बिना नहीं
रह सकता जिन्होंने प्रत्यश्न या अप्रत्यक्ष रूपसे मुझे प्रोत्साहित किया है ।
आचार्य हजारीप्रसादजी द्विवेदीने पुस्तककी भूमिका लिखकर मेरे प्रति
अपने सहज स्नेहका परिचय दिया है । उनके आशीर्वादसे ही यह पुस्तक
लिखी जा सकी । मेरे सहयोगी भाई हरिशंकरजी दा्मने नाना भावसे
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