सूर - पंचरत्न | Sur Panch Ratn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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'मक्तिकाव्य' का आरम्भकाल ही दिन्दी साहित्य का उन्नतिकाल था तो
इसमें कोड नो चित्य न होगा ।
“चि-मागं के झनुयायियों की दो सुख्य शाखायें होती हैं । एक
निगुण अर्थात् निराकार परत्रह्म की उपासना करती है, आर दूसरी
शाखा के लोग इंश्वर के सगुण अधात् साकार स्वरूप--शिव, विष्णु
राम, कृष्ण भादि--की उपासना करते हैं । कबीर साहब उस समय के
निगुणोपासकों में मुख्य गिने जाते हैं। पर उनको ओर उनके झनु+
' यायियों को तत्कालीन घार्सिक झान्दोलन के चलाने से सफलता प्राप्त न
। हुई देश की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही । यद्यपि निगुण और सुख
इंश्वर की विवेचना प्रस्तुत विषय से बाहर है, तब भी नियु योपासक
अपने उद्देश्य में झसफल क्यों हुए इस बात को स्पष्ट करने के छिये
प्रसंगवशात्ू इस संबंध में दो बात लिखना श्रयुक्तन होगा । निगुण
श्रोर सगुण दोनों ही इंश्वर के रूप हैं । दोनों ही की उपासना से परत्रद्म
तक पहुँचा जा खकत। है। किन्तु संसार के दुः्खजा में फंसा हुआ
मानव हृदय निगुण ईश्वर को हृंदयंगम नहीं कर सकता । श्राकारहीन,
रूपददीन, नामद्दीन, और अलक्ष्य इंश्वर का चिन्तन या मनन ऐसे सनचुष्यों
. की बुद्धि से परे हैं। इसके विपरीत जो इंश्वर सक्तभयहारी है, भक्तों की
पुकार सुनते ही स्वयं उनकी रक्षा के लिये दोड़ पड़ता है, जो ईश्वर
सज्जनों की रक्षा एवं दुष्कर्मो का विनाश करके घम्मंसंस्थापन के लिये
बार र श्रवतार लेता है, उसकी पुजा के लिये मानव हृदय निस्पाँत
प्रचूत्त हो जाता है, उसी के ध्यान ओर भजन को मनुष्य बड़े उत्साह श्र
प्रेस से करता है । साथ ही एक बात यह मी है कि निगु'ण॒ से--जिसका
कोई स्वरूप ही. नहीं हे--इम प्रेम नहीं कर सकते । प्रेम करें किससे
जब कोई पदाथ या व्यक्ति दो तब न? एक साधारण पत्थर से भी
प्रेस हो सकता है, श्रोर यदि उसमें कोई सुन्दर आकार या रूप हो तो
कहना ही क्या । परन्तु जिस पदार्थ की इम कहपना ही नहीं कर सकते
उससे प्रेम करें केसे ? परन्तु जिसका रूप हे, विशेषतः जो हमारे ही
समान नरख्पधघारी है, इमारे ही समान सांबारिक व्यवहारों में खिप्त
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