शिवसिंह सरोज | Shivsingh Saroj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भाषा मे नहीं देखा गया । भाषा-काव्य का मूल खोजने कं
लिये मेंने बड़े-वड़े ग्रन्थ यथावत्तू विधिपूेक वहुत उलटे-पुलंटे;
पर कुछ भी पता नहीं चला | मैंने विचारा; कदाचिट्त भाषा का
प्रथम छाचाय चेद कवीश्वर न हो। जिसने संवद् ११९४ में नाना
छन्दों में पृथ्वीराजरासा रचाहे । जब पृथ्वीराजरासा के पत्र उलरे)
तो विदित हुआ कि चन्द कवि से पहले भी चहुतेरे भच्छे-अच्छे
करीश्वर दो गुजरे हैं । तब मैंने टाइसाइव की किनाव राजस्थान और
राजतरंगिणी इत्यादि हिन्दू राज के प्राचीन इतिहासों को देखना-
भालना शुरू किया । किताव राजस्थान में मुझको अवंतीएरी के
एक प्राचीन इतिहास में लिखा पिला कि .संवत् सात सो सत्तर में
घ्रवतापुरा के राजा भोज के पिता राजा मान काव्यशास्र में
महानिपुण थे । उन्दोंने संस्कृत अर्लेकार-विद्या पएषी नाम एक
चेंदीजन को पढ़ाई । ऐएपी कवि ने संस्कृत अलेंकारों को भाषा
दीहरा में वणेन ।केंया । उसी समय से भाषा-काव्य की जड़ पड़ी ।
्ोर) कुछ शआाश्चय नहीं कि उन्हीं दिनों किसी-फकिसी कविंने
नांधिकाभेद इत्यादि के भाषाग्रन्थ बनाये हों । परेतु राजा भोज के
समय में संस्कृत-चिद्या का अधिक प्रचार होने के कारण भाषा
यथावत् उन्नति को माप न हुई हो । संवद् ८१२ में राउत ख़मानसिंह
गुदलोत सीसॉदिया) मददाराजा चित्तोड़गढ़) भाषा-काव्य के बडे
अधिकारा हुए । संवद्र &०० में खमानरासा नाम ग्रंथ भाषा में
अपने नाम से नाना छन्दों में बनाया । पीछे सब्र ११२९४ में चन्द
कवीश्वर ने पऐऐथ्वीराजरासा भाषा में बनाना प्रारम्भ किया) श्र
द& खों में एक लक्ष श्लोक ग्रैथ को रचकर एथ्वीरान चौहान का
ज़ीवनचरित्र सवतू ११२९० से संवत ११४४ तक वर्णन किया ।
नहीं दिनों ज़गनिक श्रीर केदार कवीश्वरों ने चदेलों और
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