जैन जगत | Jain Jagat

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Jain Jagat by दरबारीलाल न्यायतीर्थ - Darabarilal Nyayatirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बा० ६ दिसम्बर ६३७ ) विरोधी मित्रों से (१३ सब पदार्थोंस भी बड़ा रहता है या नहीं ? इसप्रकार | किन्तु उनका विरोध ही होता है । किसको कब स- के निशुयके लिये कराड़पतिका हृष्टान्त बहुतह्दी उप- | स्पत्ति कहत हैं, इस विवेचनका कुछ उपयोग नहीं । युक्त हैं। घनका माप रुपयस होता है तो ज्ञानका | जिनको भी जहाँपर सम्पत्ति मानलिया जाय चनकी माप अविभाग प्रतिच्छेदों या अंशोंस होता है । जब | हृष्टिसे लखपति कराड़पतिके विषयमें यद्द उदाइरण हम ज्ञानमें झविभाग प्रतिच्छेद्रोंकी कोई न कोई न लना चाहिये । यदि भम्बालेमें लखपति लाख रुपये संख्या मानव हैं तब जो बात रुपयों की तुलनाके विषय | की बात्दू एकत्रित करे तो वह लखपति तो कहला- में कही गई है वहीं ज्ञानक अविभाग प्रतिच्छेदों की ) यगा किन्तु दस रुपयेकी पूँजीवाले एक तरकारी वे- तुलनामें भी कही जायगी . यदि घनके समान ज्ञान | चनेवालके बराबर उसके पास तर कारी न निकलेगी। में तुलना न होती ता जैनशास्त्रों में यदद विवेचन क्यों | इससे मेरे पक्की ही सिद्धि होती है कि लखपतिके दाता कि अमुक ज्ञानसे अमुक ज्ञान अनन्तभाग | पास वे सब चीजें दाना आवश्यक नहीं हैं जिवनी बृद्धिरूप है, असख्यभाग बृद्धिरूप है, संख्यातभाग | उसकी 'अपेक्षा रारीबोंके पास हैं । हाँ, लाखरुपयेका वृद्धिरूप है श्रादि ? माल उसके पास हे ' दूसरा लखपति लाखरुपयका मरे हृष्टान्तोंका गढ़ इतना दृढ़ है कि आत्षे- दूसरा माल रख सकता है परन्तु उसके हाथमें बात्दू, पककों वहाँ से किसी तरह किनारा काटना पढ़ता है। ! न होगी । इस प्रकार सम्पत्तिशास्तरका यह विवेचन घनके विपयमें ्ावश्यक समता दीनिपर भी अनाव- | भी व्यर्थ है; अथवा उसका इतना ही रथ है कि श्यक विपमता ओं क। उल्लेख करके किनारा काटा श्बौर | वह मेरा पत्त सिद्ध करे । जिसमें यह बहाना नहीं था उस साफ उड़ादना पड़ा । विवाह या सं दा--बस्बईके एक स्ेता- मैंने एक श्रौर उदाहरण दिया था कि एक काव्य, स्तर मूर्तिपूजक जैनने जिनकी आयु ५७ वर्षसे न्याय, इतिद्दास आदि श्अनेक शास्त्रों का पंडित है किन्तु | अधिक है तथा पहिलेकी पत्नी व बालन भी मौजूद बह मराठी भाषा नहीं जानता और एक साधारण | हैं, विवाहके नाम पर सोलह इज्ार रुपयेमें एक खत्री रिसी विपयकी पंडिता तो नहीं हे किन्तु मराठी | कन्याकों खरीदा है ! अबोध बालिका चार सौ तोले भाषा जानती है। इन दोनोंमे कोई उत्कृष्ट अवश्य हे सोनेका जेवर देखकर बिमोहित हो गई 'और उसने किन्तु एक दूसरके विषयको नहीं जानत । । खुशी खुशी बलिके लिये झात्मसमपण कर दिया । इस रृष्टान्तमें रुपयों पैसोंकी कल्पित विषमता एम पुरस्क।र--मुलतानमें एक हिन्द ल- भी नहीं है, फिर कया वास है कि एक उत्क ज्ञानी | की एक मौलवी साहिबके पास पढ़ती थी । मौरतती अपनेसे हीन ज्ञानीके झयको नहीं जानता ? इससे साहिबने कुछ बदनीयत ज़ाहिर की । इस पर लड़ मेरे बक्तव्यकी पूरी पुष्टि होती है । । को गुस्सा 'आया और उसने तरकारी काटनेका चाकू झाश्िप (£.३)--“'ऐस बहुतसे पदार्थ हैं जो | उठाकर मौलवी साहिबकी नाक काट ली । प्रचास लाखके घनीके पास तो हों, किन्तु करोड़के |. दहेजप्रथा का भयानक परिणाम-- घनीफे पास न हो”--यदद बात सम्पत्तिशाखके श्रति- | अमरनाथ को '्पने विवाहसें कम दददेड सिला इस कूल है । कोई भी वस्तु अपने नामसे ही सम्पत्ति | लिये वह और उसकी माता दोनों बधूको सताते नहीं । जसुनाका रेता जमुना किनारे सम्पत्ति नहीं दै | रददे थे । आखिर एक रोज़ हृविकेश ले जाकर वधू और 'अंबालेमें है । सम्पत्तिका लक्षण मूल्यवान दै । | को उन्होंने गंगामें दृकेल दिया । मुक़इमा चलनेपर समार्धान- सम्पत्तिशाखके इस प्रारस्मिक सूत्र अमरनाथ को सात वर्षकी तथा उसकी माताफ। तीन के उड़ेखसे आाकषेपकके पद्की कोई सिद्धि तो दूर, ! बपंकी कड़ी फ़ेदकी सज़ा हुई ।




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