माधुरी भाग - 1 | Madhuri Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
65 MB
कुल पष्ठ :
842
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-.चि्रसूचीए:, “.. 7. ८ पर यक'
“सै एंखिद् . . . पृष्ठ: संख्या... चित्र दर ड
२६०. हरिदासजी की सगरी से सरोवर और राज- _ . ' .. २६१. हषीकेश के रास्ते में सत्यनारायणज़ी का...
_ सहल झादि का इृश्य (सजनहखों के झंत से... :' सिर हे तन 2 पर सर '. , नम. पेिद
दाहनी आर _ बड़ी पाल का कुछ श्रंश चिंत्र २६६. हेरिंगूस डाफ़॑ का आरोग्य-सवन ... ..... ०४:
में देख पढ़ता हैं)... ......... .... 8६” २६७. हेरिंगल डाफ़े की एक संडक कक मर
२६१. हाइडोस्रेन ( जल-वायु-नौका ); * फ़रॉकस्टन * ३३८१. २६८४ हैरम॑ं सेक्सिम (इन्होंने दी पहले-पहल कर
. २६२. हाथ की तुलना में इस कीड़ें का. आकार. कभेरिका. में बठे-बेठे. इंगलेड, के ; श्रादमियों ्
देखिए । इसका नकीला मैह केवल श्र को से बेतार के तार द्वारा बातचीत 'की हैं ) ..... ४१४,
..... दराने के लिये है। असल में वह खुलता नहीं है १०२. :२९४, “हिंदी” ( नेटालं ) के संपादक श्रीयुत
२६३. हाथियों का युद्ध... ... वर नर ..;. गवसीयताइसी . सर सरेताितो, ... र
. रे६४. हिमालय को किंचिनजंगा-शिखर .... ...... १७८. ८... ; ...शमती सरोजिनी, नायडू . ,. ..:. ,..:. पद
करड:द३४:४:३४५५३५३५४०४३५३४४३४३४१४४४०३४५३
हा दर रंग-बिरंगे- चित्रों का झपूचे संग्रह पर था
+.. . रमेश-चित्रा व
रचथयिता-न. :
«:. “माछुरी” के चित्रंकार बांबू रामेर्वरप्रसाद वसा
_ इस .चित्रावली में पद. बढ़िया मनोमाहक रर्गान चित्र हूं ।-सखभी. सुंदर झाट-पेपर
- पर बड़ी सफ़ाइ से छापे गए है । साथ से चित्रों का परिचय भी' सरंख, ओजास्विनी झोर
* भाव-पूंणे: हिदी-ऊवित्स में हे, जिससे - चित्र के: भाव, को. दशेक अच्छी. तर्द हृद्यंगम
कर सकें । कुछ खित्र ये हैं-लंलितां, क़मलकुमारी,- दीपक, व्यास -का.शुकदेव को
समसाना; व्यास के विनय करने पर इंद्र का रभा. को बुलाकर शुक्रदेव को अपनी ओर
अआकांषत करने के लिये. भेजना, रभा का झपने, विचित्र, हाव-भाव से. शुक् .को मोहन का:
प्रयल करना तथा. निराश रभा के सुख की 'डदासी इत्यादि-इत्यादि ..'इन- चित्रों की
_ प्रशंसा, करना व्यथे है । जां देखता हे; मुग्घ हो' जाता है. । चह स्वयं तो. झादक' होता ही
हैं, दूसरों से भी ग्राहक दोने के लिये झनुराध करता, हे ।. चीज़. ही एसी है. । ग्
चित्रावली .दर तरह से उपादिय बना दी गई.हे। इतने, पर भी सूदय: सिफ़े २), डाक-ख्ये
'झाडि झलग |. हमारे: पास झब बहुत ही कम प्रतिया रह गई हैं, इसलिये यदि श्रापको
-चित्र-कला से तनिक॑ सो प्रेम हू, तो इसकी एक प्रति आंज, दी पत्र डालकर मंगा लीजिए।
नहीं तो पीछे हाथ. मलकर, पछढछताना: पड़ेगा, क्योकि, इतने कम, दामों में एसा चि्र-संभ्हं
कहीं मिलने का. नहीं । पद े
लाश
सु
त्
दी कक
्श
एक:
ं “का
सचालक .गगा-पुस्तकमा ला-कायालय,: २६:३८,:-असानाबाद-पाके, लखनऊ
स5द2225252521:225225252225525225527
|
न सक
नयी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...