माधुरी भाग - 1 | Madhuri Bhag - 1

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Madhuri Bhag - 1  by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-.चि्रसूचीए:, “.. 7. ८ पर यक' “सै एंखिद् . . . पृष्ठ: संख्या... चित्र दर ड २६०. हरिदासजी की सगरी से सरोवर और राज- _ . ' .. २६१. हषीकेश के रास्ते में सत्यनारायणज़ी का... _ सहल झादि का इृश्य (सजनहखों के झंत से... :' सिर हे तन 2 पर सर '. , नम. पेिद दाहनी आर _ बड़ी पाल का कुछ श्रंश चिंत्र २६६. हेरिंगूस डाफ़॑ का आरोग्य-सवन ... ..... ०४: में देख पढ़ता हैं)... ......... .... 8६” २६७. हेरिंगल डाफ़े की एक संडक कक मर २६१. हाइडोस्रेन ( जल-वायु-नौका ); * फ़रॉकस्टन * ३३८१. २६८४ हैरम॑ं सेक्सिम (इन्होंने दी पहले-पहल कर . २६२. हाथ की तुलना में इस कीड़ें का. आकार. कभेरिका. में बठे-बेठे. इंगलेड, के ; श्रादमियों ् देखिए । इसका नकीला मैह केवल श्र को से बेतार के तार द्वारा बातचीत 'की हैं ) ..... ४१४, ..... दराने के लिये है। असल में वह खुलता नहीं है १०२. :२९४, “हिंदी” ( नेटालं ) के संपादक श्रीयुत २६३. हाथियों का युद्ध... ... वर नर ..;. गवसीयताइसी . सर सरेताितो, ... र . रे६४. हिमालय को किंचिनजंगा-शिखर .... ...... १७८. ८... ; ...शमती सरोजिनी, नायडू . ,. ..:. ,..:. पद करड:द३४:४:३४५५३५३५४०४३५३४४३४३४१४४४०३४५३ हा दर रंग-बिरंगे- चित्रों का झपूचे संग्रह पर था +.. . रमेश-चित्रा व रचथयिता-न. : «:. “माछुरी” के चित्रंकार बांबू रामेर्वरप्रसाद वसा _ इस .चित्रावली में पद. बढ़िया मनोमाहक रर्गान चित्र हूं ।-सखभी. सुंदर झाट-पेपर - पर बड़ी सफ़ाइ से छापे गए है । साथ से चित्रों का परिचय भी' सरंख, ओजास्विनी झोर * भाव-पूंणे: हिदी-ऊवित्स में हे, जिससे - चित्र के: भाव, को. दशेक अच्छी. तर्‌द हृद्यंगम कर सकें । कुछ खित्र ये हैं-लंलितां, क़मलकुमारी,- दीपक, व्यास -का.शुकदेव को समसाना; व्यास के विनय करने पर इंद्र का रभा. को बुलाकर शुक्रदेव को अपनी ओर अआकांषत करने के लिये. भेजना, रभा का झपने, विचित्र, हाव-भाव से. शुक् .को मोहन का: प्रयल करना तथा. निराश रभा के सुख की 'डदासी इत्यादि-इत्यादि ..'इन- चित्रों की _ प्रशंसा, करना व्यथे है । जां देखता हे; मुग्घ हो' जाता है. । चह स्वयं तो. झादक' होता ही हैं, दूसरों से भी ग्राहक दोने के लिये झनुराध करता, हे ।. चीज़. ही एसी है. । ग् चित्रावली .दर तरह से उपादिय बना दी गई.हे। इतने, पर भी सूदय: सिफ़े २), डाक-ख्ये 'झाडि झलग |. हमारे: पास झब बहुत ही कम प्रतिया रह गई हैं, इसलिये यदि श्रापको -चित्र-कला से तनिक॑ सो प्रेम हू, तो इसकी एक प्रति आंज, दी पत्र डालकर मंगा लीजिए। नहीं तो पीछे हाथ. मलकर, पछढछताना: पड़ेगा, क्योकि, इतने कम, दामों में एसा चि्र-संभ्हं कहीं मिलने का. नहीं । पद े लाश सु त् दी कक ्श एक: ं “का सचालक .गगा-पुस्तकमा ला-कायालय,: २६:३८,:-असानाबाद-पाके, लखनऊ स5द2225252521:225225252225525225527 | न सक नयी




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